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॥ श्रीः ।। बृहत्सामुद्रिकशास्त्र । (स्त्रीपुरुषलक्षण.) =080- अयोध्यामण्डलान्तर्धर्तिऊखीमपुरखीरीनेताति ज्योतिर्वित्पण्डितनारायणप्रसादभित्र कृतभाषाटीकासहित । इसको गंगाविष्णु श्रीकृष्णदासने अपने “लक्ष्मीवेंकटेश्वर छापेखाने में छापकर प्रसिद्ध किया. संवत् १९६३, शके १८२८. कल्याण-मुंबई. रजिष्टी द्वारा सत्वाधिकारको मन्त्राधिकारीने अपने स्वाधीन रखा है।