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सामुद्रिकशास्त्रम् ।। अहिदृष्टिः स्याद्रोगी विडालदृष्टिः सदापापः ॥ दुष्टो दारुणदृष्टिः कुक्कुटदृष्टिः कलिप्रियो भवति॥८६॥ अर्थ-जिसकी दृष्टि सांपकी दृष्टिके समान हो वह पुरुष रोगी होता है। जिसकी दृष्टि विलावकी दृष्टिके समान हो वह सदा पापी होता है। तथा जिसकी दारुण ( भयानक) दृष्टि हो वह मनुष्य दुष्ट होता है तथा जिसकी दृष्टि कुकुट (मुरग) के समान हा वह कलह प्रिय होता है अर्थात् उसको लडाई अच्छी लगती है ॥८६॥ अन्धः क्रूरः काणः काणादपि केक मनुजात् ॥ काणाकेकरतोऽपि क्रूरतरः कातरो भवति ॥८७॥ अर्थ-अंधा और काणा मनुष्य क्रूर अर्थात् दुष्टस्वभाववाला होता है । काणे मनुष्यसेभी अधिक क्रूर वह होता है कि जो वारं- वार दृष्टि फेरता है तथा काणे और दृष्टि फेरनेवालेसे अधिक क्रूर ( खोटा) वह होता है जो आंखको चुराता है ॥ ८७॥ । अतिदुष्टा घूकाक्षा विषमाक्षा दुःखिताः परिज्ञेयाः ॥ हंसाक्षा धनहीना व्याघ्राक्षाः कोपना मनुजाः ॥ ८८॥ अर्थ-जिनके नेत्र उडू पक्षीके समान हों वे नर अतिदुष्ट होते हैं। और जिनके नेत्र विषम अर्थात् छोटे बड़े हों वे मनुष्य दुःखी होते हैं। जिनके नेत्र हुँसकेसे हों वे पुरुप दरिद्री ( धनहीन) होते हैं । तथा जिनके नेत्र व्याघ्रकेसे हों वे मनुष्य क्रोधी होते हैं ॥ ८८ ॥ अतिपिंगलविवर्णविभ्रान्तैर्लोचनैरशुभः ॥ । अतिहीनारुणस्नैः सजलैः समलैर्नरा निःस्वाः॥८९ ॥ अर्थ-जिसके नेत्र बहुत कंजे, अशोभित रंगके, फिरते हुए और चंचल होवें वह मनुष्य अच्छा नहीं होता है और बहुत छोटे, लाल लाल, रूखे, गीले और मले नेत्र जिनके हों वे मनुष्य निर्धनी होते हैं ॥ ८९ ।। भापाटीकासहितम् । भौंहलक्षण । धनवन्तः सुतवन्तः शिखिरैः पुरुषाः समुन्नतैर्विशदैः॥ निम्नैः पुनर्भवन्ति द्रव्यसुखापत्यपरिहीनाः ॥ ९० ॥ अर्थ-जिसकी भौंहें ऊंची और देखने में अच्छी होवें तो वे पुरुष धनवान्, पुत्रवान होते हैं और जिनकी भौंहें नीची और देखने में अ- की नहीं होवें वे पुरुष धन सुख आर सन्तानसे हान हात ह॥९०।। | कर्णलक्षण ।। आद्यः प्रलम्बकर्णः सुखी स्वभावपीनमृदुकर्णः ॥ मतिमान्मूषककर्णश्चमृपतिः शङ्कर्णः स्यात्॥९१॥ अर्थ-जिसके कान लम्बे, स्वाभाविक नरम, तथा मोटे हों तो उस मनुष्यको पहिली अवस्थामें सुख प्राप्त होता है । जिसके कान मूसेके कानके समान हों वह मनुष्य बुद्धिवान होता है, जिसके कान शंखके समान हों वह चमूपति ( सेनाका स्वामी ) होता है ॥ ९१ ॥ | ह्रस्वैर्नःस्वाः कणैर्निर्मासैः पापमृत्यवो ज्ञेयाः ॥ व्यालंबिभः शिरालैः शूराः स्युः प्रायशः कुटिलैः॥९२॥ | अर्थ-जिन मनुष्योंके कान छोटे और मांसहीन हों वे दरिद्री धनहीन और पापरोगसे मृत्यु पानेवाले अथवा पापी होते हैं और जिनके कान लम्बे नसदार व टेढे होवें वे मनुष्य बहुधा कुटिल ( दुष्टस्वभाव) होते हैं ॥ ९२॥ । चिपिटश्रवणो भोगी दीर्घायुदर्घरोमशः श्रवणः ।। अतिपीनमहाभोगी श्रवणो जननायको भवति॥९३॥ अर्थ-जिसके कान चिपके होते हैं वह मनुष्य भागी होता है । जिसके कानों पर बडे बडे रोम हों वह दीर्घजीवी ( बहुत कालत के जानेवाला) होता है। जिसके कान बहुत मोटे हों वह महाभागी