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२८ सामुद्रिकशास्त्रम् । ( अधिक सुख पानेवाला) और जननायक ( बहुतसे मनुष्योंका स्वामी) होता है ॥ ९३॥ हुनु (ठाडी) लक्षण । पुण्यवतामिह चिबुकं वृत्तं मांसलमदीर्घलघुसु- संयुतं मृदुलम् ॥ अतिकृशदीर्घस्थूलं द्विधाग्र- भागं दरिद्राणाम् ॥ ९४॥ अर्थ-इस जगत्में जिन मनुष्य की ठोंडी गोल, मांससे भरी. बहुत बड़ी हो न छोटी हो और कोमल सुडौल होती है वे पुरुष पुण्यवान होते हैं और जिनकी ठोंडी बहुत पतली, बडी, मोटी, दो भागवाली होती है वे मनुष्य दरिद्री होते हैं ॥ ९४॥ हनुयुगलं सुश्लिष्टं चिबुकोभयपार्थस्थितं पुंसाम् ॥ । दीर्घ चर्क शस्तं पुनरशुभं भवति विपरीतम् ॥ ९५॥ । अर्थ-जिन मनुष्योंकी ठोंडी दोनों ओर से मिली हुई, गोल, सुडौल हो तो शुभ फलकी देनेवाली जाने और जो इससे विपरीत ठोंडी हो तो अशुभ फलकी देनेवाली जाने ॥ ९५॥ । मुच्छलक्षण ।। सान्तद्वितीयदशमिहशुकोद्वयेकोऽधिकः क्रमेण नृणाम् ॥ तदयं श्मश्रुभेदस्तद्वि- कृतिः षोडशे वर्षे ॥ ९६॥ अर्थ-जिन मनुष्योंकी मूळे वीस वर्षके भीतर अथवा इक्कीस वर्षके भीतर निकस आवें वे वीर्यको प्रगट करनेवाली होती हैं और जो सोलह वर्षके भीतर मूछे आयें तो विर्य में विकार उत्पन्न करने वाली जाने ॥ २६ ॥ भोपाटीकासहितम् । २९ परदाररताश्चौराः श्मश्रुभिररुणैर्नटा नखैः स्थूलैः ॥ रूक्षेः सूक्ष्मैः स्फुटितैः कापलैः केशान्विता बहुशः९७ अर्थ-जिन मनुष्योंकी मूंछ व दाढीके बाल लाल लाल हों तो वे पुरुष परस्त्री रमण करनेवाले होते हैं और जिनके नख मोटे, रूखे, पतले, फटे, कंजेके समान होवें और दाढी मूछमें केश बहुत होवें ऐसे मनुष्य नट अथवा नटके समान स्वभाववाले होते हैं ॥ ९७ ॥ | कुपोललक्षण । निम्नौयस्य कपोली निमसी स्वल्पकूर्चरोमाणौ ॥ पापास्ते दुःखजुषो भाग्यविहीनाः परप्रेष्याः ॥ ९८॥ अर्थ-जिन मनुष्योंके कपोल (गाल ) मांसरहित ( सुखटे) हों और मूछे छोटी हों और कपोलों पर रोम अधिक हों वे पापो दुःख- भागी होते हैं तथा भाग्यहीन और दूसरोंके दूत होते हैं ॥ ९८ ॥ सुखिनः समुन्नतैः स्युः परिपूर्णा भोगयुतांश्च मांसयुतैः॥ सिंहद्विपेन्द्रतुल्यैर्गडैर्नराधिपा नरा धन्याः ॥ ९९ ॥ अर्थ-जिन मनुष्यों के कपोल ऊंचे हों वे मनुष्य सुखी होते हैं। और जिनके कपोल मांस भरे अर्थात् उठे होवें वे परिपूर्ण भोगी और सुखी होते हैं तथा जिनके कपोल सिंह वा हाथीके समान आर सुखा होता है । होवें वे पुरुष उत्तम होते हैं ॥ ९९ ॥ | पृष्ठलक्षण ।। लभते शिरालपृष्ठो निर्धनतां भुग्नवंशपृष्ठोऽपि॥ कष्टं रोमशपृष्ठः पृथुपृष्ठो बन्धुविच्छेदम् ॥ १०० ॥ अर्थ-जिसकी पीठ नसीली और टेढी हो वह मनुष्य निर्धन- ताको प्राप्त होता है और जिसकी पीठ अधिक रोमवाली हो वह कष्ट पाता है तथा जिसकी पीठ मोटी हो वह भाइयोंजारा नाशको प्राप्त होता है ॥ १०० ॥