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| सामुद्रिकशास्त्रम् । जीवति वर्षाण्यशीतिः केशान्तोपगते रेखे ॥ भालेन वर्षनवतिः पुरुषो रेखाचितेन पुनः॥ १०९।। अर्थ-जिसके केशों के अन्ततक एक रेखा हो वह पुरुष अस्सी वर्पतक जीता है, तथा जो मस्तक अनेक रेखाओंकरके युक्त होय । तो वह नब्बे वर्षतक जीता है ॥ १०९॥ रेखा सप्ततिरायुः पंचैताग्रस्थिता पुनः षष्टिः ॥ । बढ्यो नृणां शताद्ध दशोनमपि भंगुरा ददते ॥११०॥ अर्थ-जिसके आगे भालपर पांच रेखायें हों तो वह मनुष्य । सत्तर वर्पतक जीता है अथवा साठ वर्पतक जीवन धारण करता है। जिन मनुष्योंके भालपर बहुत रेखायें हों वे पचास वर्पतक जीते। हैं तथा यदि वेही पांच रेखा स्थित हों तो देश कम पचास अर्थात् । चालीस वर्षपर्यन्त जीवन होवे है ॥ ११० ॥ भ्रूयुग्मोपगताभित्रिंशद्वर्षाणि जीवति शरीरी ॥ विंशत्यब्दानि पुनर्लेखाभिर्वा च वक्राभिः॥ १११॥ । अर्थ-जिसके दोनों भौंहोंके ऊपर रेखा होय तो वह मनुष्य तीस वर्षपर्यन्त शरीर धारण करता है और जो वेही रेखायें टेढी होंय तो वीस वर्षपर्यन्त वह जीवन धारण करता है ॥ १११ ॥ छिन्नाभिरगम्यस्त्रीगामी क्षुद्राभिरपि नरोऽल्पायुः॥ रेखाभिर्मनुजः स्यादित्याह सुमन्तविप्रेन्द्रः ॥११२॥ अर्थ-जिसके भालपर टूटी कटी रेखायें हों तो वह मनुष्य नहीं गमन करनेवाली अर्थात् अयोग्य स्त्रियोंके साथ रमण करता है और जिसके भालपर छोटी रेखायें होती हैं वह मनुष्य थोडी आयु वाला होता है इस प्रकार द्विजवर सुमन्तने मनुष्यकी रेखाका भाषाढीकासहितम् । स्कन्धलक्षण । भग्नौ मांसविहीनावंसी नतरोमशी कृशौ यस्य ।। निर्लक्षणेन लक्ष्म्या नामपि नाकणितं तेन ॥ ११३ ॥ अर्थ-जिस मनुष्यके कन्धे टेढे, झुके हुए, मांसहीन, रोमवाले, दुबले ( पतले ) होंय वह इस लक्षणसे लक्ष्मीरहित होता है उसको कभी लक्ष्मीका नामभी न सुन पडे ऐसा दारीद्री होवे ।। ११३॥ वृषवहीघा स्कन्धी निमौसी भारवाहकी पुंसाम् ॥ । कुटिलौ कृशावतितनू खेदकरी रोमशी बहुशः ११४॥ अर्थ-जिन मनुष्योंके कन्धे बैलके समान वेडे मांसहीन होय वे बोझ उठानेवाले होते हैं और जो टेढे, दुबले, छोटे तथा अ- धिक केशोंसे युक्त दोनों कंधे होवें तो खेद ( शोक) के करनेवाले जानने ॥ ११४॥ अत्युच्छ्रुितौ च अंसौ किंचिद्राह्वोः समुन्नतिं दधतः ॥ सुश्लिष्टसन्धिबन्धौ वपुषोई निशूरयोः स्याताम् ॥११५॥ अर्थ-जो कन्धे भली भांति मिले हुए जोडबन्ध और बाहुसे कुछ ऊंचे होवे तो ऐसे कन्धे धनवान और झुर ( वीर ) पुरुषोंके होते हैं ॥ ११५॥ बाहुलक्षण । निमसौ चैव भग्नालौश्लिष्टौ च विपुलौ भुजौ ॥ आजानुलम्बितौ बाहू वृत्ती पीनौ नृपेश्वरः॥ ११६॥ अर्थ-जिसकी दोनों भुजायें मांसहीन अर्थात् कुछ दुवली हो अथवा बराबर बड़ी और मोटी सुडौल होवें तथा जानुपर्यन्त लम्बा- यमान, गोल और पुष्ट भुजायें होतें तो ऐसी भुजावाला पुरुष ऐसा फल कथन किया है ॥ ११२ ॥ महाराजा होता है ॥ ११६ ॥ सामुद्रिक ३