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सामुद्रिकशास्त्रम् । निःस्वानां रोमशौ ह्रस्वौ भुजौ दारिद्रयदायकौ ॥ । अरोमश तु सुखिनी श्रेष्ठो करिकरप्रभो॥ ११७।। अर्थ-जिसकी दोनों भुजाओं पर रोम बहुत होवें और भुजा छोटी हों तो ऐसी भुजायें दारिद्रयदायक होती हैं और जो भजाये। हाथीकी मंडके समान लंबायमान और रोमरहित होवे तो भुजायें सुखी करनेवाली होती हैं ॥ ११७॥ वक्षःस्थललक्षण । उरसा घनेन धनवान्पीनेन भटस्तथोरोम्णा स्यात् ॥ निःस्वस्तनना विषमेणाकालमृतकंचनश्च नरः ११८ अर्थ-जिसकी छाती दृढ हो वह धनवान होता है और जिसकी छाती कठोर व रोमासे युक्त हो वह भट ( योद्धा ) होता है तथा जिसकी छाती छोटी होवे वह धनहीन होता है, जिसकी छाती ऊंची नीची होती है उसकी अकालमृत्यु होती है और वह मनुष्य दरिद्री होता है ॥ ११८॥ । स्तनलक्षण । वृत्ताः स्तनाः प्रशस्ताः सुस्निग्धाः कोमलाः समाः । पुंसाम् ॥ विषमाः परुषा विकटाः प्रायो दुःखाय जायन्ते ॥ ११९ ॥ अर्थ-जिन मनुष्योंके स्तन गोल, चिकने, कोमल, सुडौल, बरावर होवें वे अच्छे सुखके देनेवाले जानने और जो नीचे ऊंचे, कुटीर, देखनेमें कुडौल होवे ऐसे स्तन प्रायः दुःखके देनेवाले। इोते हैं ॥ ११९ ॥ भाषाटीकासहितम् । ई-जिसका उदर (पेट)भक ( मंडक) के पेटके समान हो वह प्य राजा होता है और जिसका पेट बैलके पेटके समान हो वह पाई वीके साथ रमण करनेवाला होता है, तथा जिसका पेट गोल हो वह मनुष्य सुखी होता है और मीन ( मछली ) व व्याघ्रके पेटके समान पेटवाला पुरुष भाग्यवान होता है ॥ १२० ॥ जठरं यस्य समं स्यादभितः स पुमान्महाथीढ्यः ।। सिंहनिभं यस्य पुनः प्राप्नोति स चक्रवर्तित्वम् १२१॥ अर्थ-जिस मनुष्यका पेट सव ओरसे बराबर हो वह पुरुष बहुत धनवान होता है और जिसका पेट सिंहके पेटके समान हो वह चक्रवर्ती राज्यको प्राप्त होता है, परंतु राजकुलमें उत्पन्न होने से यह फल ठीक जानना, अन्यथा धनवान् ऐश्वर्यवान होवे ॥ १२१ ॥ श्ववृकोदरो दरिद्रः शृगालतुल्योदरोदरोपेतः ॥ पापः कृशोदरः स्यान्मृगभुक्सदृशो हरश्चौरः॥१२२॥ अर्थ-जिसका पेट कुत्ता और भेडियाके पेटके समान हो वह दरिद्री ( धनहीन ) होता है और जिसका पेट शृगाल ( सियार) के पेटके समान हो वह डरपोक होता है तथा जिसका पेट दुबला हे वह पापी होता है और जिसका पेट चीतेके पेटके समान हो वह मनुष्य चोर होता है ॥ १२२॥ पिठरजठरो दरिद्रो घटजठरो दुर्भगः सदा दुःखी ॥ भुजगजठरो भुजिष्यो बहुभोजी जायते मनुजः१२३ अर्थ-जिसका पेट हंडियाके समान हो वह दरिद्री (धनहीन) होता है, जिसका पेट घडेके आकार हो वह अभागी सदा दुःखी रहता है, जिसका पेट भुजग ( सर्प ) के समान हो वह नर दूसरेको संवा करनेवाला व बहुत भोजन करनेवाला होता है ॥ १२३ ॥ उद्रलक्षण । भेकोदो नरपतिवृषभमयः परदारभोगी च ॥ वृत्तोदरः सुखी स्यान्मीनव्याघ्रोदरः सुभगः ॥१२॥