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सामुद्रिकशास्रम् । भापाटीकासहितम् । नाभिलक्षण। विस्तीर्णामांसोपचिता गभीरा विपुला शुभा॥ अर्थ-जिसके दोनों हाथ विस्तारवाले अर्थात् लम्बे चौडे लाल काल नखवाले बन्दुक हाथके समान होवें वह पुरुष धनवान होता नाभिः प्रदक्षिणावती मध्ये त्रिवलिशोभनम् ॥१२७ र जिसके हाथ व्याघकैसे सूखे कुडाल मांसरहित हों वह अर्थ-जिसकी नाभि ( तोदी) विस्तारवाली और मांससहित पुरुष धनहीन ( दरिद्री) होता है । १२७॥ हो अथति मोदी और गंभीर ( गहरी ) व बड़ी हो तथा दक्षिणा (दाहिनी ओरसे घूमी हुई) नाभिके भीतर त्रिवली होय ऐसी ना गावत रेखाभिः पूर्णाभिस्तिसृभिः करमूलमंकितं यस्य ॥ शुभ होती है अर्थात् एसी नाभिवाला पुरुष सुख ऐश्वर्यको धनकांचनरत्नयुतं श्रोः पातामव भजति लुब्धेव १२८ होता है इससे विपरीत हो तो अशुभ जानना ॥ १२४ ॥ अर्थ-जिसका हाथ तीन पूर्ण रेखाओंसे युक्त हो अर्थात् तीन | कुक्षिलक्षण ।। रेखायें अखंडित होकर पहुँचेमें नीचेसे ऊपरतक होवे उस पुरुषको कुक्षियस्य गभीरा विनिपातं स लभते नरः प्रायः ॥ लक्ष्मी धन, कांचन रत्नकरके सहित निलभ हो पतिके समान भज- उत्तानो यस्य पुनर्नारीवृत्तेन जीवते सोऽपि ॥ १२८। ती है अर्थात् उसके घर में लक्ष्मीका निरन्तर निवास रहे ।। १२८॥ अर्थ-जिस पुरुषकी कुक्षि (कोख ) गहिरी हो वह पुरुष प्रायः । | अरुणेनाढ्यः पीतेनागम्यस्त्रीरतिः करतलेन ॥ का अचस गिर पड और जिसकी कोख ऊंची होय वह पुरुष सितासितेन दारिद्रो नीलनापयपायी स्यात् ।। १२॥ स्रीवृत्तिसे जीवन धारण करे अथात् स्वीकी जीविकासे उसका निर्वाह होवे ।। १२५ ॥ अर्थ-जिस परुपकी हथेली लाल हो वह धनी होता है, जिसका क्षोणिपतिस्तनुकुक्षिः शूरो भोगांन्वितश्च समकुक्षिः।। हथेली पीली हो वह अनुचित स्त्रियों के संग रमण करता है, जिसकी धनहीन उच्चकुक्षिर्मायावी स्याद्विषमकुक्षः ॥१२६॥ हथेली श्वेत व काली हो वह दरिद्धी होता है, तथा जिसकी हथेली अर्थ-जिसकी कोख छोटी हो वह मनुष्य राजा होता है और नील वर्ण वह हो नहीं पीने योग्य पदार्थका पान करता है ॥१२९॥ जिसकी कोख बराबर हो वह शूर (वीर) और भोगी होता है। | अंगुष्ठलक्षण । तथा जिसकी कॉख ऊंची हो वह पुरुष धनहीन होता है और वृत्तो भुजगफणाकृतिरुत्तुंगो मांसलः शुभोऽङ्गुष्टः॥ जिसकी कोख नीची ऊंची हो चह मायावी ( कपट करनेवाला । होता है ॥ १२६॥ सशिरो ह्रस्वश्चिपिटोऽचक्रो विपुलः स पुनरशुभः १३० अर्थ-जिसका अंगूठा गोल और सांपके फनके आकार व हस्तलक्षण । ऊचा, मांससे भरा हुआ होय तो शुभ जानना तथा जिसके अँगू- इम नसे दीख पड़े और छोटा, चपटा, चक्रहीन और चौडा हो तो ऐसा अंगूठा अच्छा नहीं होता है ॥ १३ ॥ विस्तीण ताम्रनखौ स्यातां कपिवत्करौ धनाढयस्य ।। शार्दूलवद्विरुक्षी विकृती निःस्वस्य निमसौ ॥ १२७॥