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| ४१ सामुद्रिकशास्त्रम् । विपरीत अर्थात् सूखी, कुछ गहिरी, कठोर, गोलाईसे रहित. लिये होवे तो अशुभ जानना ॥ १३८ ॥ लक्ष्णैः समैर्नृपत्वं चिरमायुर्भवति लम्वितैर्वृषणैः॥ जलमरणमद्वितीयैर्मनुजानां कुलविनाशोऽपि १३९॥ अर्थ-जिन मनुष्योंके अंडकोश सुन्दर बराबर हों वे मनुष्य राजपवीको प्राप्त होते हैं, जिन मनुष्योंके अंडकोश लम्बे हों वे बहुत कातक जीवन धारण करनेवाले होते हैं, तथा जिन मन- प्याँके एकही अंडकोश होता है वह जलमें मृत्यु पानेवाला और निज कुलको विनाश करनेवाला होता है ॥ १३९ ॥ निःस्वः शुष्कस्थले रम्यरमणीरतास्तुरंगमैः ।। पुनरद्धवृषणैर्भवन्ति न चिरायुषः पुरुषाः ।। १४०॥ अर्थ-जिन मनुष्योंके सूखे और मोटे अंडकोश होते हैं वे धन- हीन होते हैं, जिनके अंडकोश घोडेके अंडकोशके समान हों वे । उत्तम स्त्रियोंके साथ रमण करनेवाले होते हैं तथा जिनके अंडकोश प्रमाणसे आधे हॉय वे पुरुप बहुत काल जीनेवाले होते हैं ॥१४०॥ | स्त्रीलोलत्वं विषमैः प्राक्पुत्रो दक्षिणोन्नतैर्युषणैः ॥ वामोन्नतैश्च तैरपि दुःखेन समं भवति दुहिता॥१४१॥ अर्थ-जिसके अंडकोश नीचे ऊंचे होंय वह मनुष्य स्त्रियोंमें चंचल होता है अर्थात स्त्रियोंमें अधिक स्नेह बढाकर अपनी चंच- लेता दिखाता है, जिसका अंडकोश दाहिना ऊंचा होय उसके पहले पुत्र उत्पन्न होता है तथा जिसका वायां अंडकोश ऊंचा होय तो दुःखपूर्वक कन्या उत्पन्न होती है ॥ १४१ ॥ लिगलक्षण । भोपाटीकासहितम् । अर्थ-लिग चार प्रकारके होते हैं, सात अंगुल, आठ अंगल, जो अंगुल, दश अंगुलका, इनमें जिसका लिंग छोटा हो वह अ- धिक आयुवाला और घनवान होता है और संसारमं स्थल ( मोटे) लिंगवाला सन्तानहीन और निर्धनी ( दरिद्री) होता है । १४२ ॥ । मेढे वामनके चैव सुतान्नरहितो भवेत् ॥ | वक्रेऽन्यथा पुत्रवान्याहारिद्रयं विन्दते त्वधः १४३।। अर्थ-जिसका लिंग टेढा और छोटा अथवा वाई ओरको झुका हुआ हो वह पुत्र और अन्न धनते रहित होता है, तथा जो दाहिनी ओरको झुका हुआ प्रतीत हो तो वह पुरुष पुत्रवान होता है और जो नीचेकी ओरको झुका हुआ हो तो दरिद्री होता है ॥ १४३ ॥ अल्पे तु तनयो लिंगे शिरालेऽथ सुखी नरः ॥ । स्थूलग्रन्थियुते लिंगे भवेत्पुत्रादिसंयुतः ॥ १४४॥ अर्थ-जिसका लिंग छोटा और ऊपरकी गाँठ सुडौल लाल लाल ऊपरको उठी हुई हो तो वह मनुष्य सम्पूर्ण सुखको भोग करनेवाला होता है और जो लिंगके ऊपरकी गांठ मोटी हो अथवा बडी हो तो वह पुत्र आदिसे युक्त होता है ॥ १४४ ॥ दीर्घलिंगेन दारिद्रयं स्थूललिगेन निर्धनः ॥ कृशलिंगेन सौभाग्यं ह्रस्वलिंगेन भूपतिः॥ १४५ ॥ अर्थ-जिस पुरुषको लिंग दीर्घ (वडा) हो वह दरिद्री होता है, जिसका स्थूल (मोटा) हो वह धनहीन होता है, जिसका कृश (पतला) हो वह भाग्यवान् ( सुखी) होता है और जिसका छोटा हो वह पृथ्वीका स्वामी होता है ॥ १४५॥ कर्कशैः कठिनैलिँगैः परदाररतः सदा ॥ । रमते च सदा दास्या निर्धनो भवति ध्रुवम् ॥ १४६॥ महद्भिरायुराख्यातं ह्यल्पलिंगो धनी नरः ॥ अपत्यरहितो लोके स्थूललिंगो धनोज्झितः ॥१४२