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४२ सामुद्रिकशास्त्रम् । अर्थ-जिसका लिंग कर्कश (कठोर ) और कडा हो वह मन सदा पराई स्त्रियोंके साथ रमण करनेवाला तथा निरन्तर साथ रमण करनेवाला और धनहीन होता है ॥ १६ ॥ | कृष्णलिंगेन सूक्ष्मेण रक्तलिंगेन भूपतिः॥ परस्त्री रमते नित्यं नारीणां वल्लभो भवेत् ॥ १७ ॥ अर्थ-जिसका काला व पतला लिग हो और लाल वर्ण हो वः । पृथ्वीका स्वामी और सदा पराई स्त्रियाक साथ रमण करनेवाला। और स्त्रियों का प्यारा होता है ॥ १४७ ॥ कृशलिंगेन रक्तेन लभते चोत्तमांगनाः॥ राज्यं सुखं च दिव्यं च कन्यकायाः पतिर्भवेत् १४८ | अर्थ-जिसका लिंग दुबला और लाल वर्ण हो वह उत्तम स्त्रियों- को प्राप्त होकर राज्य और सुखको पाता है तथा कन्याका पति होता । है अर्थात् थोडी अवस्थावाली स्त्री पाता है ॥ १४८॥ | वीर्यटक्षण । जम्बूवर्णन सुखी दुग्धसवणन रेत 'नृपतिः।। धूम्रण दुःखसहितः स्याहुःस्थःश्यामवर्णेन॥ १४९॥ | अर्थ-जिसका वीर्य जामुनके रंग के समान प्रतीत हो तो वह मनुष्य सुखी होता है, जो दूधके समान श्वेत वर्ण वीर्य हो तो वह राजा होता है तथा धुमैल वीर्य हो तो वह दुःखी रहता है और जो श्याम वर्ण वैये हो तो वह दुःखपूर्वक रहनेवाला होता है ॥ १४९॥ यस्य च्यवते रेतो लघुमैथुनगामिनो बहुस्निग्धम् ॥ दीवायुः सम्पातं पुत्रानपि विन्दते स पुमान् ॥१५॥ भाषाटीकासहितम् ।। न पतति शुक्रं स्तोकं चिरमैथुनसंगतस्यापि ॥ दारिद्रयं सोऽल्पायुर्वहुकन्याजनकतां भजते१५१॥ अर्थ-जिस पुरुषका वीर्य बहुत काल मेथुन करनेपर बहुत थो- डाभी न गिरे तो वह पुरुष दरिद्री, थोडी आयुवाला और बहुत कन्याओंको उत्पन्न करनेवाला होवे ॥ १५१ ॥ । रुधिरलक्षण ।। स्निग्धं प्रवालतुल्यं यस्यांगे भवति शोणितं न चिरम् ॥ स वहति स्वकीयभुजया मनुजा निखि- लाम्बुधिमेखलां वसुधाम् ॥ १५२ ॥ अर्थ-जिसके अंगमें रुधिर मुंगेके समान लाल लाल हो और बहुत चिकना न हो तो वह पुरुष अपनी बाहुओंके बल से समुद्र- पर्यन्त सारी पृथ्वीका राज्य भोगे ॥ १२३॥ रुधिरं यस्य शरीरे रक्ताम्बुजवर्णसम्मितं भवति ।। भुजवाल्लकङ्कणरणत्कारा तमनुसरति राज्यश्रीः १५३ अर्थ-जिस मनुष्यके शरीर में लाल कमलके रंगके समान रुधिर हो तो राज्यलक्ष्मीके समान स्त्री प्राप्त होती है अथवा लक्ष्मी उसको सब ओरसे सुख प्रदान करती है ॥ १५३॥ किंचित् पीतं शोणं शोणितमिह भवति मध्यमे पुंसि ॥ ईषत्कृष्णं रक्तं तत्तु जघन्ये परिज्ञेयम् ॥ १५४॥ | अर्थ-जिस पुरुषका रुधिर कुछ पीला और कुछ लाल प्रतीत होता है वह मध्यम होता है तथा जिसका रुधिर लाल और काला ही वह पुरुप अच्छा नहीं होता है ॥ १५४॥ रोमलक्षण । ललितानि स्निग्धानि भ्रमरश्यामानि देहरोमाणि ॥ जायन्ते भूमिभुजां मृदूनि विलसान्ति सूक्ष्माणि १५५ अर्थ-जो थोड़ी देर मथुन करनेवाले पुरुषका वीर्य ओता कना हो तो वह पुरुष बहुत आयुवाला और सम्पत्ति व पु वाला इावे ।। १५० ।।