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भूमिका । विदित हो कि सामुद्रिकशास्त्री ज्योतिषशास्त्रका एक मुख्य अंग , कि जिससे स्त्रियों और पुरुषोके शुभाशुभ लक्षण भली भांति जाने जा सकते हैं । ज्योतिषशास्त्रमें गणित और फलित नामसे दो भेद है, गणितको तो सबही विद्वान सत्य मानते हैं परन्तु फलितको अनेक विद्वान सत्य नहीं मानते। हमको तो फलितभी सत्यही प्रतीत होता है, परंतु फलितको कहने के लिये प्रथम उसके मनन करनेकी परम आवश्यकता है। देश मेद अहगणितं जातफमवलोक्य निषशेपमपि ॥ यः कथयाति शुभाशुभं तस्य न मिथ्या भवेद्वाणी ।। १।। ' जैसे कि, हम यहां कुछ चिह्न, पुरुष और स्त्रियांके लिखते हैं, कि जिनकी कई बार परीक्षा हुई है और सशे निकालें । जिस पुरुषका वर्ण गौर, कृश शरीर और सूक्ष्म देह तथा कलाई और जंघापर बाल बहुत हो, वह अत्यन्त कामी और बहुपुत्र होता है । जिसका देह लंबा, बर्ण गोधूमका, अत्यन्त चतुर और कृश देह हो, वह पुत्रहीन वा स्वल्पसन्तान होता है । ज। हस्वग्रीव, सूक्ष्म देह, चंचल स्वभाव हो वह कपटी और छली होता है । काणा, खल्वाट, खंज, तथा विडालनेत्रका पुरुष पापात्मा, कुटिल, अविश्वासपात्र होता है। जिसके लिंगम वामांग टेटा हो वह कन्याकी सन्तानवाला, और जिसके दक्षिणांग टेढ़ा हो वह पुत्रसन्ततिमान होता है । तथा जो लंव देह, स्थूल काय, बहुभाषी और उच्चशब्दवाला हो वह मानी, अहंकारी होता है । मध्यकाय, भारी देह, गौर वर्ण, शीघ्र बोलनेवाला जिसकी जिल्ला बोलने में चकटती है। बा भेददन्ती हो, वह अवश्य चतुर विद्वान तथा गुणी और बहुपुत्र होता है । कृष्णवर्ण, हृस्वतनु, कुरूप ऋरात्मा, अवश्य झूठा, छली, ठग होता है ।। जैसा पुरुषका व्यवहार है वैसाही खिर्योका है, जो स्त्री हस्वकाय, श्यामनयना। हो वह व्यभिचारिणी होती है । जिसके चरणकी तर्जनी अंगुष्ठसे लंबी हो वह व्यामचारिणी तथा विधवा होती है । जिसके हरत, पाद भारी, अंगुली छोटी, किंचित् स्थूलकाय, मध्यदेह, गौरवर्ण हो वह भी व्यभिचारिणी निर्लज्जा और नि- भैया होती है। लंबी तथा कृशदेह, पिंडली और कलाई पर बाल, शीघ्रगामिनी जिसका पांव मध्यसे पृथिवीपर न लगे वहभी व्यभिचारिणी होती है। जिसके कंध, कुच, नितम्ब, चलनेमं हिलं तथा शीघ्र और तिरछी वहभी व्यभिचारिणी होती है इत्यादि लक्षणसे स्वभाव गुण, अगुण तथा आयु पहिचानी जा सकती है। सामु- किशास्त्रमें मनन करनेसे और परीक्षासे शरीरस्य लक्षणांका यथार्थ ज्ञान हो जाता है। . ०१ Lc