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सामुद्रिकशास्त्रम् । नखलक्षण ।। विमलाः प्रवालरुचयः स्निग्धाः कूर्मोन्नता नखाः शुक्ष्णाः॥ मुकुराकाराः सूक्ष्माः सौख्यं यच्छन्ति मनुजानाम् ॥ १७१ ॥ अर्थ-जिस पुरुषके पांवके नख सुन्दर मुंगेके रंगके समान मने- हर, चिकने, कछुवकीसी पीठके तुल्य ऊंचे, दर्पणके आकार, पतले और छोटे होंय ऐसे नख पुरुपको सुख देनेवाले होते हैं ॥ १७१।। स्थूलैर्नखर्विदीर्णः शूपकारैश्च दीर्घनखैः ॥ असितैः सितैर्दरिद्रा भवन्ति तेजोरुचा रहितैः॥१७२।। अर्थ-जिस पुरुषके पांवके नख मोटे और फटे हुए होंय और सुपके आकार बडे तथा काले अथवा सपेद व चमकदार न हों। ऐसे नखवाले पुरुष दरिद्री होते हैं ॥ १७२॥ | स्त्रीपुरुषसंख्यारेखा। रेखा कनिष्ठिकायुलेखामध्ये नरस्य यावन्त्यः॥ तावन्त्यो महिलाः स्युर्महिलायाः पुनरपि मनुष्याः॥ | अर्थ-जिस पुरुषके हाथकी छोटी अंगुलीकी और आयुकी रखाके बीचमें जितनी रेखा होंय उतनीही स्त्री होती हैं अर्थात् उतने विवाह जानने और जो स्वीके एसी रेखा होंय तो उतने पुरुष उस स्त्रीक जानने ॥ १७३॥ सन्तानरेखा। मूलेंऽगुष्ठस्य नृणां स्थूला रेखा भवन्ति यावन्त्यः ॥ तावन्तः पुत्राः स्युः सूक्ष्माभिः पुत्रिकास्ताभिः१७४॥ अर्थ-जिन मनुष्योंके हाथके अंगूठेकी जडमें जितनी रेखा भाषादीकासहितम् ।। भ्रातृरेखा । यावन्तो माणबन्धायुलेखान्तः प्रतीक्षिताः स्थलाः ॥ तावन्तः संख्याकान्भ्रातृन् वदन्ति सूक्ष्मा पुनर्भगिनी॥ अर्थ-पहुँचे और आयुरेखाके वीचमें जितनी रेखायें मोदी दीख पडे उतनेही भाई उसके जानना, फिर वहींपर जितनी रेखायें पतली दीख पडे उतनी बहिनें जानना ॥ १७८॥ अल्पमृत्युरेखा ।। रेखाभिश्छिन्नाभिर्भिन्नाभिर्माविमृत्यवो ज्ञेयाः ॥ यावन्तस्ताः पूर्ण नियतं जीवन्तिताभिरेखाभिः१७६॥ | अर्थ-आयुकी रेखा जितने स्थानमें छिन्न भिन्न हो अर्थात् कट गई हो उतनीही अल्पायु जानने और जो आयुरेखा पूर्ण हो, कहीं कटी न हो तो जहांतक रेखा पूर्ण हो उतनी आयु उस पुरुषकी जानना ॥ १७६ ॥ शरीरवर्ण । गौरः श्यामः कृष्णो वर्णः संभवति देहिनां त्रेधा॥ । आद्यौ द्वावपि शस्तौ शुभो न कृष्णो न संकीर्णः१७७ अर्थ-गौर ( गोरा ), श्याम (सांवला), कृष्ण ( काला) ये तीन प्रकारके रंग मनुष्यशरीरके होते हैं, गोरा और सांवला ये दो रंग आदिके अच्छे होते हैं, काला रंग अच्छा नहीं होता तथा कुछ काला कुछ गोराभी रंग अच्छा नहीं होता है ॥ १७७॥ पङ्कजकिंजल्कनिभो गौरश्यामः प्रियंयुकुसुमसमः॥ कृष्णस्तु कजलाभः स्निग्धः शुद्धोऽपि नो शस्तः १७८ थे-कमलफूलके जीरेके सदृश गोरा रंग र धायके फुलके धमान सांवलारंग तथा काजलके तुल्य काला रंग होता है इनम । मा रग शुभी चमकदार हो वह अच्छा नहीं होता ॥ १८ ॥ खामुनिक ४ मोटी इवें उतने पुत्र उनके उत्पन्न होवें और जो पतली रखा है। उतनीद्दी कन्यायें उत्पन्न होवें ॥१७४ ॥