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सामुद्रिकशास्त्रम् । गन्धलक्षण । कर्पूरागरुमलयजमृगमदजातीतमालदलगन्धाः ॥ द्विपमदगन्धा भूमौ पुरुषाः स्युभगिनः प्रायः॥१७९॥ अर्थ-जिसके शरीरम कपूर, अगरु, चन्दन, कस्तूरी, चमेली तमालदल ( आबनूसके पत्ते ) कीसी गन्ध हो, अथवा हाथीके मद- कीसी गंध जिन मनुष्योंकी भूमिमें होवे तो ऐसे मनुष्य प्रायः । भोगी होते हैं ॥ १७९ ॥ मत्स्याण्डप्रतिशोणितनिम्बवसाकाकनीडबकगन्धाः॥ | दुर्गन्धाश्च नरास्ते दुर्भगतानिःस्वताभाजः ॥ १८०॥ । अर्थ-जिन मनुष्य के शरीरमें मछली के अंडा, रुधिर, नींव, चव, कावेके अंडा, बगुला इनकी गन्धिके समान गन्धि होवे तो। ऐसे मनुष्य भाग्यहीन और निर्धनी होते हैं ॥ १८० ॥ । गतिलक्षण । गतिभिर्भवन्ति तुल्या ये च समा द्विरदनकुलहंसानाम् ।। वृषभस्यापि नरास्ते सततं धर्मार्थकामपराः॥१८१॥ अर्थ-जिन मनुष्योंकी चाल हाथी, न्यौला, हंस इनकी चालके समान हो, अथवा वृषभ (वेल ) की चालके समान हो तो ऐसी चालवाले पुरुष निरन्तर धर्म, अर्थ, काममें निरत रहते हैं।॥१८१॥ धनिनां गमनं स्तिमितं समाहितं शब्दहीनमस्तब्धम्॥ स्वप्तानुविद्धं विलम्बितं स्याहरिद्वाणाम् ॥ १८२॥ अर्थ-जिन मनुष्याकी चाल देखनेम अच्छी, एक समान भापाटीकासहितम् ।। सुखसंचारितपादा मयूरमार्जारसिंहगतितुल्या॥ दीर्घक्रमा सुजीला भाग्यवती स्याद्गतिः सुभगा॥१८३॥ अर्थ-जिन पुरुपक चरण गमनसमय सुखपूर्वक उठे अथव मोर, बिल्ली, सिह इनकी चालक समान जिनका लम्बा डग गमनस- मय उठे ऐसी अच्छी चालवाले पुरुष भाग्यवान होते हैं ॥१८३॥ विषमा विकटा मन्दा लघुक्रमाचंचला द्रुता स्तब्धा ॥ अभ्यन्तराऽथ बाह्या लग्नपदावा गतिर्न शुभा ॥१८४॥ अर्थ-जिसकी चाल विमा (नीची ऊंची), विकटा (टेढी अथवा भय देनेवाली अथति देखने में अच्छी नहीं), मन्दर(पीपी)। अथवा बहुत फुरतीकी वा रुक रुक कर एवं भीतर बाहर पांच भिड- ते जांय ऐसी चालवाले पुरुष अच्छे नहीं होते हैं ॥ १८४ ॥ इति श्रीमत्पण्डितशोभनाथसंग्रहीते सामुद्रिकशास्त्र पूर्वखंडः समाप्तः । अथोत्तरखंडप्रारंभः। अब उत्तरखंडका प्रारंभ करते हैं. इस खंडमें स्त्रियोंके अंगके लक्षण वर्णित हैं। मस्तकलक्षण । उन्नतस्यंगुलो भालः कोमलश्च नतझुवाम् ॥ अर्धचन्द्रनिभो नित्यं सौभाग्यारोग्यवर्धकः॥१॥ अर्थ-जिस स्त्रीको भाल ( मस्तक) तीन अंगुल ऊंचा हो और कामल हो, व धुकुटी झुकी हुई हों और अर्ध चन्द्रमाके आकार हो तो साभाग्य और आरोग्यता आदि सुखका वडावनहारा होता है॥३॥ शब्दूरहित, जिसमें रुकावट नहीं ऐसी गतिवाले पुरुप धनवान् । हैं और छोटे छोटे डग धीरे धीरे रखकर चलनेवाले पुरुष ६ ( धनहीन ) होते हैं ।। १८२॥ ।