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सामुद्रिकशास्त्रम् । व्यक्तं स्वास्तिकरेखयाकुलमलंनार्या ललाटस्थळं। सौभाग्यामलभोग्यकृत्तदलिकं लम्बायमानं यदि ।। अद्धा देवरमाशुहन्ति नितरां रोमाकुलं रोगर्द।। रेखाहीनमनङ्गभङ्गजनकं ज्ञेयं बुधैः सर्वदा ॥२॥ अर्थ-स्त्रीके मस्तकमें यदि स्वस्तिक ( १ ) रेखा प्रगट हो तो वह सौभाग्यवती और सुन्दर भोगवाली होती है, एवं वही रेखा जो लटकती हुईसी अथवा लंबायमान हो तो वह स्त्री शीघ अपने देवरको नाश करती है, तथा स्त्रीका मस्तक यदि बहुत रोमॉसे यक्त हो तो रोगको देवे और जो मस्तक रेखाहीन हो तो काम- देवको भंग करे ऐसा सर्वदा पण्डितोंकरके जानना चाहिये ॥२॥ करिपुंगवकुंभसमान उत प्रवरोन्नत एवं कदम्ब- निभः ॥ इह मौलिरजस्रमिलाविमला विविधा। बहुधान्ययुता सुदृशः ॥३॥ अर्थ-सुन्दर हाथीके शिरके समान अथवा कुंभसमान सुनयनी स्त्रियोंका मस्तक ऊंचा हो एवं कदम्बके आकार हो तो ऐसा मस्तक होनेसे उनकी गृहभूमिमें सदा सुन्दर लक्ष्मीका निवास हो तथा अनेक प्रकारके धान्य अन्नादिकी प्रायः वृद्धि होवे ॥ ३॥ पीनमौलिरतिमानहारिका दारिका कुजनसंग- कारिका ॥ लम्बमौलिरपि सर्वनाशिका बन्धकी निजकुलान्तकारिका ॥४॥ अर्थ-व्रीका मस्तक जो स्थूल हो तो विशेषकरके मानका इरनेवाला होता है और वह घी दुर्जनाकी संगति करनेवाला होता है तथा जो मस्तक लम्बा हो तोभी सब नाश करनेवाली हो । वरहित है और अपने कुलको नाश करनेवाली होवे ॥ ४ ॥ भाषाटीकासहितम् । कपाले त्रिशूललक्षण । भालस्थेन त्रिशूलेन शम्भुना निर्मितेन वै॥ यस्याः शाली सहस्राणामीशितामाप्नुयादरम् ॥५॥ अर्थ-शिवजीका निर्माण किया हुआ जो त्रिशूल उसके आका- वाला चिह्न यदि सौभाग्यवती स्त्रीके मस्तकपर हो तो वह खीं हजारों सखियोंकी स्वामिनी होती है और उनी सखियोंसे आदुर पाती है ॥५॥ ललाटे भगशकटलक्षण । शकटवद्यदि योनिललाटगो मृगदृशो मृदुलोम- गणो भवेत् ॥ वरदुकूलमणिव्रजमण्डिता क्षिति- भृतां वनिता वनितावृता ॥६॥ अर्थ-यदि मृगनयनी स्त्रीके मस्तक पर कोमल रोमक समूहसे युक्त गाडी अथवा योनिके सदृश आकार हो तो वह स्त्री सुन्दर वस्त्र और मणिरत्नोंके समूहसे शोभावाली राजरानी होवे तथा अ- नेक वनिताओं ( सखिया अथवा दासियों) से युक्त होवे ॥ ६॥ विलसति भगभाले दक्षिणावर्तरूपः । कुवल्यनयनायाः कोमलो लोमसंघः ॥ नूरपतिकुलभर्तुः कामिनी मानिनीना-।। मिह भवति वदान्या सैव धन्या विशेषात् ॥७॥ अर्थ-जिस मृगनयनी स्त्रीके मस्तकपर दाहिनी ओरको घूमा हुआ कोमल रोमसमूहसे युक्त भगका चिह्न हो तो वह स्त्री विशेष- करके राजाधिराजकी वी महारानी ) होवे तथा घमंड करनेवाली स्त्रियोंमें यह राजरानी श्रेष्ठ होवे ऐसीही स्त्री धन्य होते है ॥ ७ ॥ था जो मसके और वह स्वास्थ्ट हो तो वि