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पर, पीतव सामुद्रिकशास्त्रम् ।। शिरःकेशलक्षण । केशा यस्या भ्रमरपटलोपेक्षवर्णाः सुवर्णा ।। वक्राकाराः कुवल्यदृशां किंचिदाकंचिताग्राः ।। भाग्यं सद्यो ददति विरलाः पिंगलाः स्थूलरूपा। रूक्षाकाराः परमलघवो बन्धवैधव्यदुःखम् ॥ ८॥ अर्थ-जिस मृगनयनी स्वीके शिरके केश भौराओंके समूह स- मान काले रंगके चमकीले टेढे और कुछ घुघुवारे नोंकदार होवें तो शीघ्र भाग्य ( सौभाग्य) देनेवाले होते हैं और जो विरले, पीतवर्ण अर्थात भूरे रंगके, मोटे वा रूखे किंवा बहुत छोटे हों तो बन्धन, विधवापन व दुःख देनेवाले जानने ॥८॥ । मशकतिलादिचिह्न । मशकोऽपि ललाटपट्टवर्ती यदि जागर्तिसमध्यगो। ध्रुवोर्वा ॥ तनुते सुखमर्थराशिभोगं सततं पत्युर- पत्यभृत्ययोश्च ॥९॥ अर्थ-यदि स्त्रीके ललाटपर अथवा भौंहोंके बीच में छोटे व्रणके सदृश मस्सा हो तो वह स्त्री सुख, धन अनेक प्रकारके भोग और निरन्तर पति, पुत्र व सेवकजनाका जो सुख है उस सुखको प्राप्त होवे अर्थात् सदा सुखी रहे ॥ ९॥ मशकोऽपि कपीलमध्यगामी सुदृशो लोहित एवं मिष्टदः स्यात् ॥ हृदयं तिलकेन शोभितं लशु- 'G देनेवाले जानकवा वहुत भापाटीकासहितम् । लोहितेन तिलकेन मण्डितं सुध्रुवो हि कुचमण्डलं यदा॥ जायते किल सुताचतुष्टयं बालकत्रयमुदीरितं तदा॥११॥ अर्थ सुन्दर भुकुटीवाली स्त्रीके स्तनमण्डलपर जो लाल तिल हो तो निश्चय उस स्त्रीके चार कन्यायें उत्पन्न होवें और तीन पुत्र उत्पन्न होवें ऐसा पूर्वाचायाने कथन किया है ॥ ११ ॥ भवति वामकुचेऽरुणलॉछनं शुभदृशस्तिलकंक- मलप्रभम् ॥ प्रथमतस्तनयं परिमूय सा कृतिवरं विधवा तदनंतरम् ॥ १२ ॥ अर्थ-जिस सुनयनी स्वके वायें कुचपर लाल चिह्न हो अथवा कमलके रंगसमान तिल हो तो उस स्त्रीके प्रथम एक सुपुत्र प्रगट होवे अनन्तर वह विधवा हो जावे ॥ १२ ॥ लसति बालमधुव्रतसन्निभं शुभदृशस्तिलकं गुददक्षिणे ॥ नरपतेरबूला कमलालया नृपमपत्यमरं जनयेदलम् १३ अर्थ-जिस सुनयनी (स्त्री) के छोटे भौरों के समूह के आकार (काला ) तिल गुदाके दक्षिण भागमें हो तो वह राजाकी स्त्री होवे और उसके घरमें लक्ष्मीका वास हो तथा वह सुन्दर राजपुत्रको जने ॥ १३ ॥ मशकोऽपि च नासिकाग्रगामी सुदृशी विद्रुमका- न्तिरर्थदायी ॥ अलिपक्षनवाभ्ररूपधारी पतिहंत्री किल पुंश्चली विशेषात् ॥ १४ ॥ अर्थ-जिस सुनयनी स्वीके नाकके आगे मुंगेकी कान्तिके सदृश मस्सा हो तो द्रव्यको देनेवाला जानना और जो भौरके पंखसमान अथवा नवीन मेघके समान रूपवाला हो तो वह स्त्री निश्चय- करके अपने पतिको मारनेवाली और विशेषकरके व्यभिचा- रिणी होती है ॥ १४॥ नेनापि च राज्यकारणम् ॥ १० ॥ अर्थ-जिस सुनयनी स्वीके बीच गालपर लाल लाल मस्सा है। तो इच्छानुसार कार्य सिद्धि होती है और जो तिल वा लहुसन - यपर हो तो राज्य प्राप्त होता है ॥ १० ॥