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सामुद्रिकशास्त्रम् ।। यदि नाभेरधोभागे तिलकं लॉछनं स्फुटम् ॥ सौभाग्यसूचकं ज्ञेयं मशको वा नतध्रुवम् ॥ १६॥ । अर्थ-यदि झुकी हुई भौंहवाली स्त्रीकी नाभिके नीचे तिल वा लहुसन प्रगट दीख पडे अथवा मस्सा होवे तो ऐसा चिह्न सा- भाग्यसूचक जानना अर्थात् ऐसे चिह्नवाली स्त्री सौभाग्यवती रहती है ।। १५ ।। | यदि करे च कपोलतलेऽथा भवति कंठगतं तिलकं तदा ॥ श्रुतितलेऽपि च सा पतिवल्लभा वरदृशो मशकामललांछनैः ॥ १६॥ अर्थ-यदि सुनयनी (स्त्री) की हथेली वा कपोल (गाल ) पर। अथवा कंठ यद्वा कानके नीचे तिल हो तो वह स्त्री पतिकी प्यारी होवे एवं मस्सा अथवा प्रगट लहसन आदि चिह्न हों तोभी यही फल जानना ॥ १६ ॥ नेत्रलक्षण । रक्तान्ते लोचने भद्रे तदन्तः कृष्णतारके॥ कम्बुगोक्षीरधवले कोमले कृष्णपक्ष्मणी ॥१७॥ अर्थ-जिस स्त्रीके नेत्रोंका अंतभाग लाल रंगका हो तो कल्या- दायक होता है, तिन नेत्रोंके भीतरकी पुतली काली वा शंख और दूधके समान श्वेतवर्ण होवे और कोमल व काले पलक हो ताभी कल्याण होवे ऐसा जानना ॥ १७॥ अल्पायुरुन्नताक्षी च वृत्ताक्षी कुलटा भवेत् ॥ अजाक्षी केकराक्षीच कासराक्षीच दुर्भगा ॥१८॥ अर्थ-ऊँचे नेत्रवाली स्त्री थोडी आयुवाली होती है अर्थात् जिस स्त्रीके नेत्र ऊंचे हों उसकी आयु (उमर ) थोडी होती है और गाल भाषाटीकासहितम् । नेवाली स्त्री कुलटा (व्यभिचारिणी) होती है अर्थात् जिस स्वीके नेत्र गोल हों वह स्त्री परपुरुपगामिनी होती है, एवं अजा (बकरी) के समान नेत्रााली, कुंजी वा भंत के नेत्रप्तमान नेत्रपाली वी दुर्भ गा होती है अर्थात् जिस स्त्रीक नेत्र बकरीक नेत्र समान हों वा कुंज नेत्र हों, यद्वा भैसकेसे नेत्र हों तो वह स्त्री अभागी होती है ॥१८॥ पिंगाक्षी च कपोताक्षी दुःशीला कामवजिता ॥ कोटराक्षी महादुष्टा रक्ताक्षी पतिघातिनी॥१९॥ अर्थ-पीले रंगके नेत्रवाली वा कृपोत ( कबूतर) केसे नेत्रवाली स्वी दुष्टस्वभाववाली अथवा शीलरहित और कामहीन होती है। अर्थात् जिस स्त्रीके नेत्र पीले हों वा कबूतरके नेत्र समान हैं तो ऐसी स्त्री शीलरहित होती है और उससे कामकी सिद्धि नहीं होवे तथा कोटराक्षी ( गहिरे नेत्रवाली) स्त्री महादुद्दा होती है अर्थात् जिस स्त्रीके नेत्र गहिरे हों वह अति स्वभाववाली होती है और लाल नेत्रवाली स्त्री पतिघातिनी होती है अर्थात् जिस स्वीके नेत्र लाल लाल हों वह स्त्री पतिको मारनेवाली होती है, लाल नेत्रवाली स्त्रीका पति मृत्युको प्राप्त होता है ॥ १९ ॥ विडालाक्षी गजाक्षी च कामिनी कुलनाशिनी ॥ वन्ध्याच दक्षकाणाक्षी पुंश्चली वामकाणिका॥२०॥ अर्थ-विडाल ( माजरी) केसे नेत्रवाली और गज ( हाथी) केसे नेत्रवाली कामिनी (स्त्री) कुलको नाश करनेवाली होती है। अर्थात् जिस स्वीके नेत्र बिल्लीके नेत्रके समान हों अथवा हाथी नेत्रके समान जिसके नेत्र हों उस स्त्रीको कुलनाश हो जाता है तथा दाइने नेत्रसे कानी स्त्री वन्ध्या होती है अर्थात् जिस स्त्रीका दाहि- नत्र न होवे, उस स्त्री के पुत्र नहीं उत्पन्न होवे एवं वायें नेत्रसे