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सामुद्रिकशास्त्रम् । चमकदार हों और मुखभरमें बत्तीस हों तो वह स्त्री सदा स. ग्यवती रहे ॥ २७॥ । | अधोदन्ताऽधिकत्वेन मातृहीना च दुःखिता ॥ विधवा विकटाकारैः स्वैरिणी विरलद्विजैः ॥ २८॥ अर्थ-जिस स्वीके नीचेके दांत गिनतीमें अधिक वा बड़े हों तो वह स्त्री मातासे रहित हो और दुःखित रहे तथा जो दांत विकटा- कार हों अर्थात् देखने में कुरुप हों तो विधवा होवे और जो दांत विरले ( अलग अलग ) होवे अर्थात् कुछ कुछ अन्तरसे हों तो वह । स्त्री स्वैरिणी ( व्यभिचारिणी) होवे ॥२८॥ | जिह्वालक्षण। कोमला सरला रक्ता श्वेता च रसना शुभा॥ स्थलाया मध्यसंकीर्णा विकृता सुखनाशिनी ॥२९॥ अर्थ-स्त्रीकी जीभ कोमल, सीधी, लाल रंगकी अथवा सपेद रंगकी हो तो ऐसी जीभ शुभ फल देनेवाली होती है तथा जो मोटी वा बीचमें चौड़ी और विकृतरूप ( देखनेमें कुरूप वा विका- रयुक्त) हो तो ऐसी जीभ सुखको नाश करनेहारी होती है ॥ २९ ॥ श्यामया कल्हा नित्यं दरिद्रा स्थल्या भवेत् ॥ अभक्ष्यभक्षिणी ज्ञेया जिह्वया लम्बमानया ॥ ३० ॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी जीभ काली हो वह स्त्री नित्य कलह करने वाली होती है और जिस स्वीकी जीभ मोटी हो वह दरिद्रा ( धन- से हीन ) होती है तथा जिस स्वीकी जीभ लंबी हो वह अभक्ष्य (नहीं खानेके योग्य ) पदार्थको भक्षण करनेवाली होती है ॥ ३० ॥ तालुलक्षण। तालु कोकनदाभासं कोमलं भद्रकारकम् ॥ नारी प्रव्रजिता पीते सिते वैधव्यमाप्नुयात् ॥ ३१ ॥ जापाटीकासहितम् । अर्थ-जिस स्त्रीको तालू कोकनद अर्थात् लाल कमलके समान ग वा कान्तिवाली और कोमल हो तो भकारक (कल्याण करने- वाली) होती है, एवं जो पीले रंगकी हो तो वह स्त्री प्रजता अर्थात् विरक्त चित्तवाली होवे तथा सपेद रंगकी हो तो वह स्त्री विधवा हो जावे ॥ ३१ ॥ श्यामले पुत्रहीनाच रूक्षे तालुनि दुःखिता ॥ वक्रे कलिप्रिया नारी बहुरूपे च दुर्भगा ॥ ३२ ॥ अर्थ-जिस स्वीकी तालू सांवले रंगकी हो तो वह पुत्ररहित हो अर्थात् उसके पुत्र नहीं होवे, यदि होवे तो जीवे नहीं, और जो तालू रूखी हो तो वह स्त्री दुःखित रहे, तथा जिसकी ताल टेढी हो वह स्त्री कलहप्रिया होवे अर्थात् उसको लडाई अच्छी लगे, एवं जिसकी तालू बहुरूप अर्थात् अनेक रंगकी हो तो वह स्त्री भाग्य- हीन होवे ॥ ३२॥ । घण्टिका ( घाँटी) लक्षण । क्रमसूक्ष्मारुणा वृत्ता स्थूलो घण्टी शुभा मता ॥ । अतिस्थूला प्रलम्बा च कृष्णा नैव शुभा भवेत् ॥३३॥ अर्थ-जिस स्त्रीको घण्टी ( तालुस्थजिह्वा) क्रमसे सूक्ष्म ( छोटी अथवा पतली ) और अरुण (लाल), गोल तथा मोटी हो तो शुभ होती है और जो बहुत लंबी और काले रंगकी हो तो शुभ नहीं होती है ॥ ३३॥ । वाणीलक्षण । भवति चेदनिमीलितलोचनं शुभदृशा दरफुल्लक पीलकम् ॥ अलमलाक्षतदन्तमुदीरितं पतिहिते सततं स्मितमुत्तमम् ॥ ३४ ॥ | अर्थवभक्षिणी शैयारदा स्थूल्य