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सामुद्रिकशास्त्रम् । | अर्थ-जित स्वीको वाणी नेत्र मीचे विना, सुन्दर दृष्टिसहित. कुछ खिड़े हुए मुखते, सुन्दर कपोल (गाल ) की शोभासे संयुक्त ऐसी हो तथा बात करते समय दुत नहु। निकले और मन्द मुस- क्यान हो ऐसी वाणवाली स्त्री अपने पतिको सर्वदा चाहनेवाली और उत्तम स्वभाववाली होती है ॥ ३४ ॥ नासिकालक्षण । नासिका तु लघुच्छिद्रा समवृत्तपुटा शुभा ॥ स्थलाग्रा मध्यनम्रा च न शस्ता सुभ्रवो भवेत्॥३५॥ अर्थ-जिस सुत्त (सुन्दरभृकुटीवाली) स्त्रीकी नासिका ( नाक ) छोटे छेदुकी, बराबर सीधी और गोल आकार पुटकी हो तो शुभ होती है और जो आगेका भाग मोटा हो और बीचमें गहिरी व नरम हो तो अच्छी नहीं होती है ॥ ३५॥ लोहिताग्रा कुंचिताच महावैधव्यकारिणी ॥ नासिका चिपिटाकारा प्रलम्वा च कलिप्रिया ॥ ३६॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी नासिकाका अग्रभाग ( नोंक ) लाल रंगकी हो और टेढी हो तो ऐसी नासिका वैधव्यकारिणी (विधवा करने वाली) होती है तथा जो चिपिट आकारवाली नासिका हो और लम्बी हो तो वह स्त्री कलहप्रिया होवे अर्थात् उसको लडाई अच्छी लगे ॥ ३६॥ दुन्तशब्द ।। किटकिटेति कलं कुरुते मिथः शुभदृशः शयने तु रदावली ॥ महदमंगलमाह विशेषतः प्रियतमे तनुलक्षणकोविदाः ॥ ३७॥ नापाटीकासहितम् ।। अर्थ-जो सुनयनी स्त्री शयन करते समय दांतोंसे किटकिट = करे अर्थात् सोते समय स्त्रीको दावली ( दांतों की पंक्ति ) पर लड़े तो शरीर के लक्षण जानने वाले पण्डितने यह लक्षण अमंगल (विधवा आदि) को करनेवाला जानना अर्थात् विशेषकरके यह कुलक्षण जानना ॥ ३७॥ ओएलक्षण ।। वर्तुला रेखयाक्रान्तो बन्धू कसदृशोऽधरः ॥ स्निग्धो राजप्रियो नित्यं सुभुवः परिकीर्तितः ॥३८॥ अर्थ-जिन सुटू ( सुन्दर भवाली) स्त्रियों के अधर (आठ) रेखाओं से युक्त आर बन्धूक (एक प्रकारका फूल) के समान हो तथा चिकने हों तो यह नित्यही राजाकी प्यारी होवे ऐसा कहा गया है ॥ ३८॥ प्रलम्बः पुरुषाकारः स्फुटितो मांसवर्जितः ॥ दौर्भाग्यजनको ज्ञेयः कृष्णो वैधव्यसूचकः ॥ ३९॥। अर्थ-जिस स्त्रीका औंठ लम्बा हो, पुरुषके ओठके तुल्य हो, फटा हुआ हो, मांसवर्जित अर्थात् रूखा सुखा हो तो दुर्भाग्यसु- चक जानना अर्थात् अभाग्यका करनेवाला जानना और जो काले रंगके होंठ हों तो वैधव्यसूचक जानना अर्थात् काले होवाली स्वी विधवा हो जावे ॥ ३९ ॥ । कपोललक्षण ।। मांसलौ कोमलावेतौ कपोलौ वर्तुलाकृती ॥ समुन्नती मृगाक्षीणां प्रशस्तौ भवतस्तदा ॥ ४० ॥ अर्थ-जिस मृगनयनी वीके कपोल ( गाल ) मांस से भरे भार कोमल व गोल आकारके हों तथा उंचे हों तो शुभ फल होता है ॥ ४० ॥