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सामुद्रिकशास्त्रम् । निमसौ परुषाकारौ रोमशौ कुटिलाकृती॥ सीमन्तिनीनामशुभौ दौभाग्यपारवर्द्धकौ ॥४१॥ । अर्थ-जिस नवयौवना स्वीके दोनों कपोल ( गाल) मांसरहित (सूखे ) हों और रोमॉसे युक्त हों तथा कुटिलाकृति (टेढे) तिरछे होवें तो अशुभ और अभाग्यको बढानेवाले जानने ॥ ४१ ॥ हुनुलक्षण । सुघना कोमला यस्या निलमा च हनुः शुभा॥ लोमशा कुटिला लघ्वी चातिस्थूला न शोभना ॥४२॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी हुनु ( ठोडी) सुन्दर,घनी, कोमल और रोम- रहित हो तो शुभ होती है और जो रामसहित, टेढी, छोटी अथवा बहुत मोटी हो तो शुभ नहीं होती है ॥ ४२ ॥ । कण्ठकृक्षण ।। कण्ठो वर्तुलरूपः कमनीयः पीनतायुक्तः॥ । चतुरंगुलश्च यस्याः सा निजभर्तुः प्रिया भवति॥४३॥ अर्थ-जिस स्त्रीका कंठ गोल स्वरूपवाला और सुन्दर ऊंचाई लिये हुए हो और चार अंगुलका लंबा हो वह स्त्री अपने पतिकी प्यारी होती है अर्थात् उसका पति उस स्त्रीका बहुत प्यार करता है ॥ ४३ ॥ गुप्तास्थिमांसला ग्रीवा त्रिरेखाभिः समावृता ।। सुसंहता तदा शस्ता विपरीता न शोभना ॥४४॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी ग्रीवा ( घीच ) की हड्डी छिपी हुई और मससे भरी हुई तथा तीन रेखाओंसे युक्त बराबर और देखनेमे अच्छी व पुष्ट हो तो ऐसी ग्रीवा शुभ होती है और जो इससे विप- रीत हो अर्थात् इड्डी दिखलाती हो, सूखीसी, कुडौल और अपुष्ट हो तो ऐसी ग्रीवा अच्छी नहीं होती है ॥ ४४ ॥ भापाटीकासहितम् ।। स्थलग्रीवा धवत्यक्ता रक्तग्रीवा च दासिका। अपतिश्चापिटग्रीवा लघुग्रीवार्थवर्जिता ॥४५॥ अर्थ-जिस स्त्रीका कंठ स्थूल ( मोटा) हो वह स्त्री अपने पतिसे छाडी हुई रहे और जिसका कंठ रक्तवर्ण ( लाल ) हो वह स्त्री दासी होकर रहे, तथा जिस स्रीका कंठ चौडा हो वह स्त्री पतिरहित (विधवा) हो जावे और जिसका कंठ छोटा हो वह स्त्री घनसे हीन (दरिद्रिणी) होवे ॥१५॥ कण्ठावर्ती भवति कुलटा भर्तृहंत्री कुरूपा पृष्ठा- वर्ता कठिनहृदया स्वामिहंत्री कुलघ्नी ॥ आवतों। वा भवत उदरे द्वाविहेकोऽपि यस्याः सापि । त्याज्या कृतिभिरबला लक्षणशैस्तु दूरात्॥ ४६॥ । अर्थ-जिसके कंठमें रोमोंका आवर्त (चक्र) घूमा हुआ हो तो वहस्त्री कुलटा ( व्यभिचारकर्म करनेवाली) और पतिको हनन । करनेवाली व कुरुप होवे, एवं जिसके पीठमें रोमोंका चक्र हो तो वह कठोरहृद्यवाली अर्थात् कर्कशा दयासे रहित अपने पतिको नाश करनेवाली तथा कुलको विनाश करनेवाली होवे, तथा जिस स्वीके पेटमें दो वा एकभी भौंरा हो तो ऐसी स्त्रीको तथा पूर्वोक्त कुलक्षणोंसे युक्त स्त्रीको दूरहीसे परित्याग कर देना चाहिये ऐसा लक्षण जाननेवाले पंडितोंने कथन किया है ॥ ४६॥ सीमन्ते च ललाटे च कण्ठे वापि नतध्रुवः ॥ लोम्नामावर्तको दक्षी वामी वैधव्यसूचकः॥४७॥ अर्थ-जिस सुप्त स्त्रीकी मांगमें वा माथेमें वा कंमें रोमों का आवर्त अर्थात् भरा दाहिने वा वायें ओरको घूमा हुआ हो तो वह वैधव्यसूचक होता है यह बात सर्वत्र प्रसिद्ध है, के जिस स्वकी मागर्म भौरी होती है वह स्त्री विधवा हो जाती है ॥ १७॥ सामुदिक० १