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सामुद्रिकशास्त्रम् । अंगुष्ठमूलतो रेखा कनिष्ठा यदि गच्छति ॥ यस्याः सा पतिहंत्री तां दूरतः परिवर्जयेत्॥६६॥ अर्थ-जिस स्त्रीके अंगूठेकी जडसे छोटी अंगुलीके जडपर्यन्त । रखा गई हो वह स्त्री पतिको हनन करनेवाली होती है ऐसी स्त्रीको दूरसेही पारत्याग करना चाहिये ॥ ५५॥ यदि करे करपालगदामलप्रखरकुन्तमृदङ्गकुरड़- वत् ॥ भवति शूलनिभा खलु रैखिका भुवि सदा धनदा प्रमदा तदा ॥६६॥ अर्थ-जिस स्त्रीको हथलीमें करपाल ( खड़), गदा, उत्तम घारवाला भाला, मृदंग, हरिण और शूल इनके आकार रेखा प्रगट दीख पडे तो वह स्त्री निश्चय पृथिवपिर धनवती और धनकी देनेवाली होवे है ॥५६॥ वृषभकट्टश्चिकभुजङ्गजम्बुकाः खरकङ्कपत्रश- लभा बिडालकाः॥ यदि वामपाणितलगा भवन्ति। चेत्कलहेन सार्द्धमतिरोगकारकाः ॥१७॥ अर्थ-जिस स्त्रीके वायें हाथकी हथेलीमें वृष ( वैल), भेक (मॅडक ), वृश्चिक (वछी), भुजङ्ग ( सर्प ), जम्बुक ( सियार), खर ( गर्दभ), कंकपत्र ( केंचुवा पक्षी ), शलभ (टीडी), विडाल ( विल्ली) इनके आकार रेखा अथवा चिह्न हों तो वह स्त्री कलह करनेवाली और रोगिणी होती है ये लक्षण रोग करनेवाले होते हैं ॥ ५७॥ . अंगुष्ट लक्षण । कोमलः सरलऽगुष्टो वर्तुलो यदि योषिताम् ॥ क्रमादेवं कृशांगुल्यो दीर्घाकाराश्च वर्तुलाः॥५८॥ जापाटीकासहितम् ।। अर्थ-यदि स्त्रियोंका अंगूठा गोल और कोमल व सीधा तथा अंगूठेके पाससे अन्य अंगुलियां क्रमसे छोटी हों और लंबी व गोल होवें तो शुभ जानना ॥२८॥ | हुस्तांगुलिलक्षण । पृष्ठरोमाः प्रजाः शस्ताश्चिपिटा उदिता बुधैः॥ कृशाः कुचितपर्वाणो ह्रस्वा रोगभयावहाः॥९॥ अनेकपर्वसंयुक्ता उन्नतांगुलयः शुभाः ॥६॥ अर्थ-यदि स्त्रियोंके पीठपर रोम प्रगट हो गये हों एवं अंग- लियोंका पृष्ठभाग चिपेटा अर्थात् चौंडा हो तो पंडितोंने शुभ कहा है और जो अंगुलि पतली, टेढे पर्ववाली अर्थात् अंगुलियाके पोरुवे टेढे हों और अग्रभाग छोटा हो तो रोग और भयको देने- वाले जानने । जिसके हाथ की अंगुलियां पर्व समेत ऊंची अर्थात लंबी हों तो शुभ अर्थात् सौभाग्य आदि फलको देने वाली जाननी अर्थात् लंबी अंगुलियां शुभ फल देनेवाली होती हैं ॥ ५९॥ ६० ॥ अंगुष्ठांगुलिकं युग्मं यत्पद्मकलिकासमम् ॥ वहुभोगाय नारीणां निर्मितं विधिना पुरा ॥ ६ ॥ अर्थ-जिन स्त्रियोंके हाथका अंगूठा और दो अंगुली ये कमल की कलीके समान हों तो स्त्रियोंके बहुत भोगके अर्थ पूर्वसमय ब्रह्माजीने बनाया है ॥ ११ ॥ । करतलक्षण । करतलं भुजयोयदि कोमलं विमलपद्मनिभं च समुन्नतम् ॥ निजपतेः कुसुमायुधवर्धकं निगदितं मुनिना विधिनोदितम् ॥ ६२ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी हथेली और दोनों भुजा यदि कोमऊ, निर्भ- चिह्न हों तो वह ढेि होते हैं। और रोगिणी