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७० सामुद्रिकशास्त्रम् । छ कमलके समान और ऊचे हों अथवा हथेली कमलके रंगके ।। मान हो और दोनों भुजायें लंबी हों ये लक्षण स्वीके पतिके काम- देवको बढावनेवाले जानने ऐसा ब्रह्माजका कहा हुआ मुनियोंने कथन किया है ॥६२ ॥ स्वच्छरेखाकुलं भद्रं नो भद्रं हीन रेखया ॥ अभद्रं रेखया हीनं वैधव्यं चातिरेखया ॥ ६३ ॥ अर्थ-जिस स्त्रकिी हथली साफ रेखाओसे भरी हो तो कल्या- णकारी जानने और जो रेखायें छोटी हों तो अमंगलको करे हैं तथा जो रेखायें न हों तभी अमंगल जानना और जो बहुत रेखायें हों वह स्त्री विधवा होवे ॥ ६३॥ | करपृष्ठलक्षण ।। शिरालं कुरुते निःस्वं नारीकरतलं यदि ॥ समुन्नृतं च विशिरं करपृष्ठं सुशोभनम् ॥ ६४ ॥ अर्थ-जिस स्त्रकिी हथेली बहुत नसासे युक्त हो और हाथका। पृष्ठ अर्थात् पिछला भाग ऊंचा और नसोंसे रहित हो तो शुभ फल होता है ॥ ६४॥ रोमाकुलं गभीरं च निर्मासं पतिजीवहृत् ॥ सुनुवः करपृष्ठस्य लक्षणं गदितं बुधैः ॥ ६६ ॥ अर्थ-जिस स्वीका करपृष्ठ अर्थात् हाथकी पीठ बहुत रोमोसे युक्त हो, गहिरी और मांसरहित ( सूखीसी) हो तो पतिके जीवको हरण करे है इस प्रकार सुन्दर भौंहवाली स्त्रियोंके करपृष्ठके लक्षण पंडितोंने कहे हैं॥६६॥ शंखशुक्तिनिभा निम्ना विवर्णा न नखाः शुभाः ॥ नखलक्षण। | कपिला वक्रिता रूक्षाः सुभ्रवः सुखनाशकाः ॥६६॥ भोपाटीकासहितम् । । अर्थ-जिस स्त्रीके नख शंख और सीपके आकार और बीचमें गहिरे तथा रंगमें अच्छे न हों तो ऐसे नख शुभ नहीं होते हैं तथा जो कपिल वर्ण (पीले रंग) हों और टेढे अर्थात् मुडे हुए व रूखे होवें तो ऐसे नख सुखको नाश करनेवाले होते हैं ॥ १६॥ यदि भवन्ति नखेषु मृगीदृशां सितरुचो विरला यदि बिन्दवः ॥ अतितरां कुसुमायुधपीडया पर- जनेन लपन्ति रमन्ति ताः ॥ ६७॥ अर्थ-जिन मृगनयनियोंके नखोंमें सपेद रंगके सुहावने विन्दु होवें तो वे बहुतही कामबाणकी पीड़ा करके अन्य मनुष्योंके साथ बातचीत करें और रमण करें ॥ ७॥ बाहुमूललक्षण । स्रस्तांसा संहतांसा च धन्या भवति कामिनी ॥ तुंगांसा विधवा ज्ञेया विमांसा सा तथैव च ॥ ६८ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीके बाहुमूल अथवा कन्धेके किनारे चाँडे अथवा कडे हों वह स्त्री धन्या अर्थात् भाग्यवाली होती है और जो बाहु- मूल ऊंचे तथा मांसहीन ( रूखे ) हों तो विधवा होवे ॥ १८ ॥ स्कन्धलक्षण ।। पुत्रिणी विनतस्कन्धा ह्रस्वस्कन्धा सुखप्रदा॥ पुष्टस्कन्धा तु कामान्धा रतिभोगसुखावहा॥ ६९ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीके कन्धे झुके हुए हों वह पुत्रवती होती है और जिसके कन्धे छोटे हों वे सुख देने वाले होते हैं तथा जिसके कॅन्ध पुष्ट हों वह कामदेवकी पीडासे अन्धी होती है और रतिभोगसुख- वाली होती है ॥ ६९ ॥