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सामुद्रिकशास्रम् । वक्षःस्थललक्षण । लोमहीनहृदयं यदा भवेन्नम्नताविरहितं समा- यतम् ॥ भोगमेत्य सकलं वराङ्गना सा पुनः प्रियवियोगमालभेत् ॥ ७० ॥ अर्थ-जिस स्त्रीका हृदय अर्थात् वक्षःस्थल रोमहीन हो और ऊंचा नीचा न हो तथा लंबाई चौडाई बराबर हो तो वह वराङ्गना अर्थात श्रेष्ठ स्त्री सम्पूर्ण भोगसुखको प्राप्त होवे फिर वह स्त्री प्रियके वियोगका प्राप्त होवे ॥ ७० ॥ उद्भिन्नरोमहृदया स्वपतिं निहन्ति विस्ताररूप- हृदया व्यभिचारिणी स्यात् ॥ अष्टादशाहु- लाभतं हृदयं सुखाय चेद्रोमशं च विषमं न सुखाय किंचित् ॥ ७ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीके हृदयपर फटे मुखके रोम होवें तो वह स्त्री अपने पतिको नाश करनेवाली होती है और जिसकी छाती बडी लंबी चौडी हो तो वह स्त्री व्यभिचारिणी होती है, तथा जिसका वक्षःस्थल अठारह अंगुलका हो तो ऐसा हृदय सुखके अर्थ जानना और जिसके वक्षःस्थलपर रोम बहुत हों और विषम अर्थात् बेडौल ऊंचा नीचा हो तो कुछभी सुख उस स्त्रीको प्राप्त न होवे ॥ ७१ ॥ उन्नतं पीवर शस्तं हृदयं वरयोषिताम् ॥ अपीवरमिदं नीचं पृथुदौभाग्यसूचकम् ॥७२॥ अर्थ-जिन श्रेष्ठ स्त्रियोंका वक्षःस्थल ऊंचा व स्थूल हो तो शुभ होता है और जो गहिरा सूखा व कठोर हो तो बहुत अभाग्यप- नको सूचित करता है अर्थात् जिस स्वीकी छाती गहिरी रूखी व कठोर हो वह अभागी होती है ॥७२॥ भाषाटीकासहितम् ।। स्तनलक्षण । भवत एव समौ सुदृढाविभौ यदि धनौ सुदृशस्तु पयोधरौ ॥ निजपतेरनिशं परिवर्तुलो कुसुमवा- णविनोदविवर्धक॥७३॥ अर्थ-जिस सुनयनी स्त्रीके स्तन (कुच) बरावर, सुन्दर, दृढ और घने व गोल हों तो वह स्त्री अपने पतिको कामदेवके बाणसे आनन्द बढावनेवाली होती है ॥ ७३ ॥ | सुभ्रुवो विरलौ सूक्ष्मौ स्थूलाग्रावहिताविभौ ॥ पयोधरौ तदा नार्याः प्रभवेद्दक्षिणोन्नतः ॥ ७४ ॥ अर्थ-जिस सुभ स्त्रीके स्तन विरले हों अर्थात् अलग अलग हों। मिले न हों और छोटे हों अग्रभाग उनका कुछ मोटा हो और कठोर हों तथा दाहिनी ओर ऊंचे और झुके हों तो उस स्त्रीको ।। ७४॥ पुत्रदोप्यथ कन्यादो यदा वामोन्नतो भवेत्॥ । सान्तरालौ च विस्तारौ पीवास्यौ न शोभनौ ॥७५॥ अर्थ-पुत्रदायक होते हैं और जो वायें ओरको ऊंचे वा झुके हुए हों तो कन्या देनेवाले होते हैं, तथा यदि दोनों स्तनों के बीच अन्तर हो और वडे हों तथा स्तनका मुख स्थूल हों तो शुभफल नहीं जानना ॥७५ ॥ मूले स्थूलौ क्रमकृशावग्रे तीक्ष्णौ पयोधरौ ॥ सुखदौ पूर्वकाले तु पश्चादत्यन्तदुःखदौ॥७६॥ । अर्थ-जिस स्त्रीके स्तन अडमें मोटे फिर क्रमसे पतले होके आगे तीक्ष्ण हों तो उस स्त्रीको बाल्य अवस्थामें सुख देते हैं जैार पीछे ( वृद्धावस्था) में दुःख देते हैं ॥ ७६ ॥