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सामुद्रिकशास्त्रम् । त्रिवलीवलीलक्षण । कृशतरा त्रिवली सरलावली ललितनर्मविनोदवि- वर्धिनी ॥ भवति सा कपिला कुटिलाकुला शुभ- करी विरला महदाकृतिः ॥७७॥ अर्थ-जिस स्त्रीके बारीक त्रिवली हृदयसे भगपर्यन्त तीन पंक्ति तथा सीधी रोमवाली रामाकी पंक्ति हो तो वह स्त्री प्रेमभरी उत्तम वार्ताओंसे आनन्द बढानेवाली होती है तथा जो वह त्रिवली भरे रंगवाली और कुछ टेढी रोमोंवाली हो तो अधिक क्रोध करनेवाली होवे और जो पूवक्त त्रिवली वडी आकृतिवाली हो तो शुभ फल करनेवाली जानना ॥ ७७॥ उदरलक्षण । पृथूदरी यदा नारी सूते पुत्रान् बहूनपि ॥ भेकोदरी नरेशान बलिनं चायतोदरी ॥ ७८॥ | अर्थ-जिस स्त्रीका पेट बडा हो तो वह बहुत पुत्रोंको उत्पन्न करती है और जो लंबा व फैला हुआ उदर हो तो उसका पुत्र बलवान होता है ॥ ७८ ॥ उन्नतेनोदरेणैव वन्ध्या नारी प्रजायते ॥ जठरेण कठोरेण सा भवेद्भिन्दुकांगना॥ ७९ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीका उदर ऊंचा हो तो वह स्त्री वन्ध्या (पुत्ररहित) होती है और जो कठोर ( कडा) उदर हो वह स्त्री भिन्दुका (नीच जातिमें अच्छे पुरुष ) की स्त्री होती है ॥ ७९ ॥ आवर्तेन युतेनैव दासिका भवति ध्रुवम्।। कोमलैमाससंयुक्तैः समानैः पार्श्वकैः शुभम् ॥८० ॥ भाषादीकासहितम् । अर्थ-यदि स्त्रीके उदरमें भंवर हो तो वह स्त्री निश्चय दासी होती है और कोमल व मांसयुक्त उदर हो और कोखे बराबर हों तो शुभ फल होता है । ८० ॥ विशिरेण मृदुत्वचा सपुत्री जठरेणातिकृशेन का- मिनी सा ॥ बहुधा तुलभोगलालिता सानुदिनं मोदकसरफलाशिनी स्यात् ॥८१॥ अर्थ-जिस स्त्रीका उदर नसोंसे रहित हो और कोमल व त्वचा- वाला हो अथवा बहुत दुर्बल हो तो वह स्त्री पुत्रवती होती है और अनेक प्रकार के अतुल भोगामें उसकी लालसा होती है तथा प्रति- दिन उत्तम मोदक (लहूआदि ) और फल मेवा आदि पदाथाक भक्षण करनेवाली होती है ॥ ८१ ॥ घटाकारं यस्या भवति च मृदङ्गेन सदृशं । यवाकारं दैवादमाहितं पुत्ररहितम् ॥ अभद्रं नो भद्रं तदपि यदि कूष्माण्डसदृशं । निरुक्तं तत्त्वज्ञैः कठिनमुरुशालेन च समम् ॥८२॥ अर्थ-जिस स्त्रीका पेट घडेके आकार अथवा मृदंगके आकार वा देववश जौके दानके आकार हो तो वह स्त्री पुत्रोंसे हीन हो एवं यदि कुम्हडके आकारवाला पेट हो तभी कल्याणफल नहीं देता है तथा उरु शालके समान कठिन हो तो तत्वके जाननेवाले पुरु- पाने पूर्वोक्त फलके समान फल वर्णन किया है ॥ ८२॥ । नाभिलक्षण । गभीरा दक्षिणावर्ती नाभिभौगविवर्धिनी ॥ व्यक्तिग्रन्थः समुत्ताना वामावर्ता न शोभना॥८३॥ अर्थ-जिस स्वीकी नाभि गहिरी और दाहिनी ओरको घूमी हुई हो तो वह भाग बढानेवाली होती है तथा जिसकी नाभिके