पृष्ठम्:बृहत्सामुद्रिकाशास्त्र.pdf/४५

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भाषाटीकासहितम् ।। अर्थ-स्त्रीकी योनि ( भुग ) यदि हाथीके कन्धेके समान रूपवा- ढी हो वा कछुएकी पीठके आकार हो वह राजाको कामक्रीडामे आनन्द देनवाली अथात् राजपत्नी होवे, तथा जिसकी भग उप- रको उठी हुई हो एसी योनिवाली स्त्री कन्याओं को उत्पन्न करने सामुद्रिकशास्त्रम् ।। बीच गांठ प्रगट दीख पडे और नाभि खुली हुई हो अथवा वाई ओरको घूमी हुई हो ऐसी नाभि शुभ नहीं होती है ॥ ८३॥ | नितम्बकटिलक्षण । समुन्नतनितम्बाद्या यस्याः सिद्धांगुला कटिः ॥ सा राजपट्टमहिषी नानालीभिः समावृता ॥८४॥ अर्थ-जिस स्त्रीके नितम्ब ऊंचे हों और कटि चोवीस अंगुलकी हो वह स्त्री राजाकी पट (श्रेष्ठ ) रानी और अनेक सखियोंसे सम्य- क प्रकार संयुक्त होवे अर्थात् वह रानी होवे और बहुतसी दासियां उसकी सेवा करें ॥ ८४ ॥ निमसा विनता दीघा चिपिटा शकटाकृतिः ॥ लघ्वी रोमाकुला नार्या वैधव्यं दिशते कटिः॥८५॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी कटि मांसहित झुकी हुईसी, बैठी हुई, गा- डीके आकारवाली, छोटी और बहुत रोमोंवाली हो तो ऐसी कटि- वाली स्त्री विधवा होती है ॥ ८५॥ सीमन्तिनीनां यदि चारूबम्बो भवेन्नितम्बो बहु- भौगदः स्यात् ॥ समुन्नतो मांसल एवं यासां पृथुः सदा कामसुखाय तासाम् ॥ ८६ ॥ अर्थ-यदि सभाग्यवती स्त्रियोंके नितम्ब सुन्दर बिम्बसम हों तो बहुत भोग देनेवाले होते हैं और जो ऊंच मोटे और बडे हों तो उन स्त्रियांक सदैव कामसुखके देनेवाले होते हैं अर्थात् ऐसे नितंब अच्छे होते हैं ॥८६॥ " योनिलक्षण । यदा गजस्कन्धसमानरूपो भगोऽथवा कच्छप- पृष्ठेवृषः ॥ इलापतेः कामविनोददायी वामोन्नतः। सोऽपि सुताजनेताः ॥ ८७ ॥ वाली होती है ॥ ८७॥ अश्वत्थदलरूपो वा भगो गूढमणिः शुभः ॥ चुल्हिकोदररूपी यः कुरङ्गखुरसन्निभः ॥ ८८ ॥ अर्थ-जिस स्वकी भग पीपलके पत्रके आकार हो अथवा गुप्त- मणिके सदृश हो तो शुभ छावे है तथा जो चूल्हेके पेटके समान अथवा हिरणके खुरके समान हो ॥ ८८ ॥ रोमाकुलोऽदृष्टयोनिर्विकृतास्यो महाधमः ।। | कामिनां न विनोदाह भगो भवति सर्वथा ॥ ८९ ॥ अर्थ-तथा बहुत रोमांसे युक्त हो कि जिससे योनि दिखाई न पडे और जिसका मुख विकारवाला हो अर्थात देखने में अच्छी न लगे ऐसी भग अधम जानना, सो सर्वथा कामी पुरुपके आनन्द- हेतु नहीं होती है ॥ ८९ ॥ | कामिन्या कंचुकावर्ती भगो दौर्भाग्ववर्द्धकः ॥ स गर्भधारणाशक्तो वक्राकारोऽपि तादृशः ॥ ९० ॥ । अर्थ-जिस स्त्रकिी योनि कंचुकावर्त हो अर्थात् दोनों ओर उंची बीचमें खाली हो तो एसी योनि दुर्भाग्यको वढावनेवाली होती है। और वह गर्भ धारण करनेके योग्य नहीं होती है तथा जो वक्र (टेढे) आकारकी हो तोभी दुर्भाग्य बढावनेवाली और गर्भधारण- में असमर्थ जानना ॥ ९० ॥