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सामुद्रिकशास्त्रम् । अर्थ-जिस वीके दोनों जानु मोटे, बहुत गोल और सन्द तो बहुत शुभ फल देते हैं और महाराजाकी स्त्री ( महारानी के समान वह स्त्री होती है, यदि पूर्वोक्त लक्षणसे विपरीत लक्षणवाले जानु हों तो विपरीत जनना॥ ९८॥ रोमलक्षण । एकरोमा प्रिया राज्ञा द्विरोमा सौख्यभागिनी॥ त्रिरोमा विधवा ज्ञेया रोमकूपेषु कामिनी ॥९९ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीके जंघाओंपर रोमकूप अर्थात् रोमोंके मूलमें एकही रोम हो तो वह स्त्री राजाकी प्यारी (रानी) होवे और जो दो दो रोम होवें तो सुखभाागनी ( ऐश्वर्यवाली) होवे तथा जो तीन तीन रोम हों तो विधवा होवे ॥ ९९ ॥ पाणिलक्षण ।। समानपाष्णिः सुभगा पृथुपाष्णिश्च दुर्भगा॥ कुलटा तुंगपाष्णिश्च दीर्घपाणिर्गदाकुला॥१०० ॥ अर्थ-जिस स्त्रीके घुटने बराबर व सुन्दर हों वह स्त्री भाग्यवाली होती है और जो ऊंचे घुटने हों तो वह खी व्यभिचारिणी होती है। तथा जिसके घुटने लंबे हों वह स्त्री रोगसे पीडित रहती है॥१०० गुल्फलक्षण । निर्मासेन सदा नारी दुर्भगा खलु जायते ॥ गुल्फ गूढौ शुभौ स्यातामशिरालौ च वर्तुलौ॥१०१॥ अर्थ-जिस स्त्रकेि दोनों गुल्फ अर्थात् घुटनाके नीचेका अंग मांसरद्दित अर्थात् सूखे और पतले हों तो वह स्त्री अवश्य दुर्भगा होती है तथा जो दोनों गुल्फ मोटे, विना नसोंके, गोल और सुन्दर पुष्ट हो तो सुभगा अर्थात उत्तम ऐश्वर्यवाली होती है ॥ १०१।। भोपाटीकासहितम् । । ८१ अगूढौ शिथिलौ यस्यास्तस्या दौर्भाग्यसूचकौ ॥ गुल्फलक्षणमाख्यातं पादलक्षणमुच्यते ॥ १०५॥ अर्थ-जिस स्त्रीके गुल्फ खुले और शिथिल हों तो वह दुर्भगा होती है यह गुल्फलक्षण कहा, अब आगे चरणलक्षण कहते हैं१०२ चरणलक्षण। कमलकम्बुरथध्वजचक्रवत्थुलमीनविमानवि- तानवत् ॥ भवति लक्ष्म पदे यदि योषितां क्षिति- भृतां वनिता विभुतावृता॥ १०३ ॥ अर्थ-जिन स्त्रियोंके चरणोंमें कमल, शंख, रथ, ध्वजा, चक्रस- मान, बडी मोटी मछली, विमान और चांदनी इनके समान चिह्न हों तो वे राजाओंकी स्त्री (राजरानी) होवे हैं अर्थात् पूर्वोक्त चिह्न जिस स्त्रीके चरणमें हों वह स्त्री राजरानी होती है और ऐश्वर्यसे युक्त होती है ॥ १०३॥ पादुतललक्षण ।। युवतिपादतलं किल कोमलं सममतीव जपाकुसु- मप्रभम् ॥ दिशति मांसलसुणमिलापतेरतिहितं बहुधर्मविवाजतम् ॥ १०४ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीका चरणतल ( तलुवा ) कोमल, बराबर, जपा- कुसुम ( ओडके फूल) के सदृश लाल हो तो वह स्त्री मोदी और उष्ण प्रकृतीवाली राजाकी प्यारी और बहुत धर्मसे रहित होवे १०४। शूर्पाकारं विवर्णं च विशुष्कं पुरुषं तथा।। रूक्षं पादतलं तन्व्या दौर्भाग्यपरिसूचकम् ॥१५॥ अर्थ-जिस वरांगनाका चरणतल सूपके आकार और रंगहीन, खरखरा, कठोर तथा रूखा हो तो ऐसा चिह्न अभाग्यसूचके अर्थात् भाग्यहीन करनेवाला होता है ॥ १०६ ॥ सामुदिक* ६ विशुष्क सरिसूचक रंगहीन