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सामुद्रिकशास्त्रम् । गतिलक्षण । संचलन्या पदा धूलिधारा यदा राजमार्गेऽवलाया। बलादुच्छलेत् ॥ पांसुला सा कुलानां त्रयं सत्वरं। नाशयित्वा खलैमदते सर्वदा॥१६॥ अर्थ-जिस स्त्रीके चलते समय मार्ग में धूलिकी धारा उडे अथ- वा जो स्त्री निज वलसे उछलती हुई चले तो वह पांसुला अर्थात जारिणी शीघ्र तीन कुल अर्थात् माता पिता व पतिके कुलको नाश करके सदा दुष्ट जनाको प्रसन्नमन रहनेवाली होती हैं ॥१०६॥ । पादांगुलिलक्षण । यस्या अन्योन्यमारूढा पादांगुल्यो भवन्ति चेत् ॥ सा पतीन् बहुधा हत्वा वारवामा भवेदिह ॥१०७॥ अर्थ-जिस स्त्रीके चरणकी अंगुलियां एक दूसरीपर चढी हुई होवें तो वह स्त्री अनेक पतियोंको विनाश करके वारवामा अर्थात् वेश्या होती है ॥ १०७ ॥ अनामिका तथा मध्यमांगुलिकालक्षण । अनामिका च मध्या च यदि भूमिं न संस्पृशेत् ॥ आद्या पतिद्वयं हन्ति चापरातु पतित्रयम् ॥ १०८॥ अर्थ-जिस स्त्री के चरणकी अनामिका और बीचकी अंगुली पृथिवीमें न छुवे उसमें एक उठी रहे तो दो पतिको और दोनों उठी रहें तो तीन पतियोंको नाश करे तथा जारिणी होवे ॥ १०८॥ अनामिकाच मध्याच यदि हीना प्रजायते ॥ तदा सा पतिहीना स्यादित्याह भगवान्स्वयम्१०९॥ अर्थ-जिस स्वीके चरणके बीच की और अनामिका ( छोटी अंगुलीके पासकी) अंगुली छोटी हों तो वह स्त्री पतिसे होन हावे यह स्वयं भगवान्ने वर्णन किया है ॥ १०९॥ भोपाटीकासहितम् ।। कनिष्ठांगुलिलक्षण। कनिष्ठान स्पृशेद्धर्मि चालत्यो योषितस्तदा ॥ सा द्रुतं स्वपतिं हत्वा जारेण रमते पुनः ॥ ११०॥ अर्थ-जिस स्त्रीके चलते समय चरणकी छोटी अंगुली पृथि- वीको न छुवे तो वह स्त्री शीघ्र अपने पतिको मारकर फिर अन्य पुरुपोंके साथ रमण करनेवाली होवे ॥ ११० ॥ पादनखलक्षण ।। यदि पानखाः स्निग्धा वर्तुलाश्च समुन्नताः ॥ ताम्रवण मृगाक्षीण महाभोगप्रदायकाः १११॥ अर्थ-जिस स्त्रीके चरणोंके नख चिकने, गोल, उठे हुए, तांबेके रंगके समान हों तो वे स्त्रियोंको उत्तम भोग ऐश्वर्यप्रदानवाले होते हैं ॥ १११॥ पदपृष्ठलक्षण ।। यदि भवेदमलं किल कोमलं कमलपृष्ठवदेव मृ- गीदृशाम् ॥ अरुणकुंकुमविद्रुमसन्निभं बहुगुणं पदपृष्ठमिति ध्रुवम् ॥ ११२॥ अर्थ-जिस मृगनयनी स्वीके चरणोंकी पीठ निर्मल, कोमल, कम उपत्रकी पीउके समान लाल रंग, कुंकुम वा विद्रुम (मूगे ) के समान हो तो वह स्त्री निश्चय बहुत गुणोंवाली होती है ॥ ११२॥ । अन्यशुभलक्षण । अंघ्रिमध्ये दरिद्रा स्यान्नम्रत्वेन सदाङ्गना ॥ शिरालेनाध्वगा नारी दासी लोमाधिकेन सा ॥११३॥ अर्थ-जिस स्त्रीके चरणोंके बीचमें नत्व (गहिरापन ) हो वह जा दादा (धनहीन ) होती है और जो चरणयुलियोपर नत