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८४ सामुद्रिकशास्त्रम् । अधिक हों तो वह स्त्री रास्ता चलनेवाली होती है तथा जो चरण गुलियोंपर राम अधिक हों तो वह दासी होवे है ॥ ११३ ॥ कनिष्ठानामिकाया च यस्यान स्पृशते महीम् ॥ अंगुष्ठं वागतातीत्य तर्जनी कुलटाच सा॥११४॥ अर्थ-जिस स्त्रीके चरणकी छोटी अंगुली और अनामिका अं- गुली चलते समय भूमिपर न लगती होवे अथवा चलतेपर अंगठा अपने समीपवाली वडी अंगुली पर चढ़ जाता हो तो वह स्त्री कुलटा ( व्यभिचारिणी) होती है ॥ ११४॥ ऊर्ध्व ताभ्यां पिण्डिकाभ्यां जंघे चातिशिराचले॥ रोमशो चातिमसि च कुंभाकार तथदरम् ॥ ११५॥ अर्थ-जिस स्त्री की दोनों जंघायें ऊपर की ओरको बहुत मोटी होवें और जंघाओंमें नाडी दीख पडे तथा रोम बहुत हों, मांस बहुत बढ आवे, कुंभके आकारका पेट जिसका हो ये लक्षण अच्छे नहीं होते हैं ॥ ११३॥ वामावर्त नाभिमल्पं दुःखितानांच गुह्यकम् ॥ ग्रीवा ह्रस्वा च योनी या दीर्घाया च कुलक्षये॥११६॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी नाभि बाई ओरको घूमी हुई हो और छोटी होय एवं गुदाभी वाई ओरको घूमी हुई और छोटी होय, तथा ग्रीवा छोटी होय और योनि जिसकी बड़ी होवे ऐसे लक्षण वाली स्री दुःखित रहे और उसका कुलक्ष्य हो जावे ॥ ११६॥ प्रस्थूला या प्रचण्डाश्च स्त्रियः स्युनत्र संशयः॥ ककर पिंगले नत्र स्यावेतो लक्षणासती ॥ ११७॥ अर्थ-जिस स्त्रीका कपोल स्थूल हो तो वह स्त्री प्रचण्डा (कलह करनेवाली) होती है और जिस स्त्रीके नेत्र पीले और एंचाताना हा नापाटीकासहितम् । तथा विलावके नेत्रसमान नेत्र हों और चंचल हों तो ऐसे लक्षण- वाली स्त्री अवश्य व्यभिचारिणी होती है। ११७॥ सांत कूपे गंड्योश्च सा ध्रुवं व्यभिचारिणी॥ प्रलंबिनी ललाटेच देवर हंति चांगना ॥ ११८॥ अर्थ-जिस स्त्रीके कपोलोंपर कुछ श्यामवर्ण गढे दीख पडें तो वह स्त्री अवश्य व्यभिचारिणी होती है तथा जिस अंगनाका ललाट लंबायमान हो वह अपने देवर ( पतिके छोटे भाई ) को विनाश करती है अर्थात् लंबे शिरवाली स्त्रीका देवर मर जावे ॥ ११८ ॥ | उदरेश्वशुर होति पति होति स्फिचोर्द्धयोः ॥ । या तुरोमोत्तरोष्ठी स्यान्न शुभा चोर्द्धरामिका॥११९॥ अर्थ-जिस स्त्रीके उदर (पेट) पर झ्यामता होय तो वह स्त्री अपने श्वशुरको हनती है और जो स्त्रीके दोनों होंठ ऊपरको चढे हुए हों तो वह स्त्री अपने पतिको हनन करनेवाली होती है तथा जिस स्त्रीके होंठोंके ऊपर केश होय अर्थात दाढी मूंछके स्थानपर केश होंय तो अशुभ फल होता है ॥ ११९॥ स्तन समावेशुभ कण च विषम तथा ॥ करालविषमा दन्ताः केशाय च भयाय च ॥ १२० ॥ अर्थ-जिस स्त्रीके दोनों स्तन रोमयुक्त हों तो अशुभ होते हैं और जिसके दोनों कान विषम ( बेडौल) बहुत छोट हों तथा दांत देखने में अच्छे न हों और छोटे वडे हों तो केश और भयके देनेवाले जानने ॥ १२० ॥ चौर्याय पुष्टमांसं च दीर्घा भर्तुश्च मृत्यवे ॥ कव्यादिरूपैर्हस्तैश्च वृककंकादिसन्निभैः ॥ १२ ॥ अर्थ-जिस खोके दोनों कानों का मांस पुष्ट हो तो वह स्त्री चोरी