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८६ सामुद्रिकशास्त्रम् । करनेमें प्रवीण होवे और जिसके कान बडे बडे हों तो पतिक मृत्य- का कारण जानने अर्थात् पतिको मृत्यु हो जावे तथा कौआ आदि व हाथके समान आकार अथवा भेडिया गीध आदिकोंके कानके समान कान जिस स्त्रीके होंय वहभी विधवा हो जावे॥१२१ शिरालैर्विषमैः शुष्कैर्वित्तहीना भवन्ति हि ॥ दुःखिता पापनिरता ऊध्र्वनाडीच डाकिनी ॥१२२॥ अर्थ-जिस स्त्रीके हाथ पांव आदि अंग प्रत्यगोंमें नसें बहुत हों और वे नसें विषम और शुष्क हों तो वह स्त्री धनसे हीन और दुःखयुक्त व पापिनी होती है तथा जिस स्त्रीके मस्तकमें उनाडी ( खडी नसें ) हो तो वह स्त्री डाकिनी ( कलह करनेवाली व्यभि- चारिणी) होती है ।। १२२॥ समुन्नतोत्तरोष्ठी या कलहा रूक्षकेशिनी ॥ स्त्रीषु दोषा विरूपाक्षा यत्राकारो गुणस्ततः॥ १२३ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीका ऊपरका होंठ बडा मोटा दुल होके ऊंचा होय और केश रूखे होंय अर्थात् भूरे बाल होवें तो वह स्त्री कलह कर- नेवाली होती है तथा जिस स्त्रीके नेत्र भयंकर होंय तो क्लेश करने- ' हारे जानने, स्त्रियोंमें कुरूपताही दोष है और सुन्दरताही गुण है१२३ हस्तपादनानाचिह्नवर्णन । वाजिकुंजरश्रीवृक्षयज्ञेषु यवतोमरैः ॥ ध्वजचामरमालाभिः शैलकुंडलवेदिभिः ॥ १२४ ॥ अर्थ-वाजि (घोडा), कुंजर ( हाथी, ) श्रीवृक्ष ( बिल्व ), यज्ञ- केड अथवा यज्ञखंभ, तोमर ( गुरगुंजनामक शस्त्र), ध्वजा, चामर (चार), शैल (पर्वत), कुंडल, वेदी ये चिह्न हाथमें हों॥ १२४ ।। भोपाटीकासहितम् । शंखातपत्रपझैश्च मत्स्यस्वस्तिकसद्रथैः ॥ लक्षणैरंकुशाद्यैश्च स्त्रियः स्यू राजवल्लभाः ॥ १२५॥ अर्थ-एवं शंख, आतपत्र (छत्र ),पद्म (कमल), मत्स्य (मछ- ली), स्वस्तिक ( पताका) ,उत्तम रथ, अंकुश ये चिह्न हों ऐसे चिह्नयुक्त लक्षणांवाली स्त्री राजाकी प्यारी अर्थात् राजरानी होती है ॥ १२५॥ निगूढमणिबन्धौ च पद्मगपमौ करी ॥ न नीचं नोन्नतं स्त्रीणां भवेत्करतलं शुभम् ॥१२६ ॥ अर्थ-जिस स्त्रीका मणिबन्ध ( पहुँचा ) मोटा, मांस से भरा हो, कमलफूलके गर्भ के समान कोमल दोनों हाथ होंय और न ऊंचा न नीचा ऐसा करतल अर्थात् हथेली हो तो शुभ जानना॥ १२६ ।। रेखान्वितां त्वविधवां कुर्यात्संयोगिनी स्त्रियम् ।। रेखायुग्मत्येिन लग्ना सुखभोगप्रदा शुभा ॥ १२७॥ अर्थ-जिस स्त्रीके हाथमें दो रेखाओंका संयोगं दीख पडे अर्थात् तर्जनी और अंगूठके बीच दो रेखायें मिली हुई मूलपर्यन्त चली गई हों तो वह सौभाग्यवती स्त्री नाना प्रकारके सुखोंको भोग कर- । नवाली होती है ॥ १२७॥ रेखा वा मणिबन्धोत्था गता मध्यांगुली करे।। गता पाणितले यावत् योर्ध्वपाणितले स्थिता॥१२८॥ अर्थ-अथवा जिस स्त्रीके मणिबन्ध ( पहुँचा) से उठी हुई उध्वे (खडी) रेखा मध्यमा ( बीचकी) अंगुलीकी जडतलेतक चली गई हो अथवा ऊर्ध्व रेखा हथलीमें जड़तक हा अथवा चरणतलमें | रेखा हो तो ऐसी रेखा शुभ होता है॥ १२८॥ स्त्रीणां पुंसां तथा सम्येक राज्याय च सुखाय च ॥ पुत्रपौत्रादिसम्पन्ना चोर्ध्वरेखा सुखप्रदा ॥ १२९॥