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८८ सामुद्रिकशास्त्रम् । | अर्थ-तथा जिन स्त्रिया वा पुरुपोंके हाथमें वा चरणतलमें ऊर्छ । रेखा प्रत्यक्ष प्रगट दीख पडे तो राज्य व सुख पूर्ण प्रकारसे प्राप्त होवे। और पुत्र पौत्र आदिकोंसे सम्पूर्ण सुख सदा प्राप्त होवे ॥ १२९ ॥ कनिष्ठामूलरेखा तु कुयाच्चैव शतायुषम् ॥ अनामिका मध्यमामन्तरालगता सती॥ १३०॥ अर्थ-जिस स्त्र के बायें हाथकी कनिष्ठिका ( छोटी) अंगुलीकी जडमें ऊर्ध्व रेखा होय तो सौ वर्षकी आयु होती है और अनामिका ( छोटी अंगुलीके पासकी) अंगुली तथा मध्यमा ( बीचकी अंगुली ) से मिली हुई ऊर्ध्व रेखा हो तो वह स्त्री सती ( पतिव्रता) होती है ॥ १३० ॥ ऊना ऊनायुषं कुर्याद्रेखाचांगुष्ठमूलगा ॥ बृहत्यः पुत्रदा अन्याः कन्यादाश्च प्रकीर्तिताः॥१३ १॥ अर्थ-पदि ऊर्ध्व रेखा अंगूठेके मूलसे लगी हुई कुछ छिन्न भिन्न प्रतीत हों तो थोडी आयु कहना और अंगुष्ठके मूलके नी- चमें जितनी रेखायें हैं सो सव लम्बी लम्बी मोटी मोटी पुत्र होनेकी रेखायें हैं और छोटी छोटी पतली पतली रेखायें कन्या . होनेकी हैं ऐसा कहा गया है ॥ १३१ ॥ अल्पायुपे लघुच्छिन्ना दीर्घाच्छिन्ना महायुषे ।। शुभं तु लक्षणं स्त्रीणां प्रोक्तं त्वशुभमन्यथा ॥ १३२॥ अर्थ-आयुकी रेखा यदि छोटी हो और छिन्न भिन्न हो तो थोडी आयुको लक्षण जानना और बड़ी रेखा हो और रेखा छिन्न भिन्न हो तो दीर्घायु हानेका लक्षण जानना, शुभ लक्षण यदि स्त्रियों के अंगम प्रतीत हाय तो शुभ फल जानना और जो अशुभ लक्षण हो तो अशुभ फल जानना ऐसा कहा है ॥ १३२॥ भापाटीकासहितम् ।। स्त्रीपुरुप लक्षण । स्त्रियां पांच प्रकारकी हैं. १ पद्मिनी, २ चित्रिणी, ३ शंखिनी, ४ हस्तिनी, ५ कृत्या नामवाली कही हैं, कामशास्त्रमें प्रायः चार प्रकारकी स्त्रियां कथन करी हैं और लक्षणभी चारहीके पृथक पृथक् कहे हैं, एवं पांच प्रकाके पुरुष यथा १ देव, २ गन्धर्व, ३ यक्ष, ४ राक्षस, ५ पिशाच, लक्षणसहित कहे हैं. तहां प्रथम स्त्रियोंके लक्षण लिखते हैं । | पद्मिनीलक्षण । सम्पूर्णेन्दुमुखी कुरङ्गनयना पीनस्तनी दक्षिणा ।। मृदुंगी विकचारविन्दसुराभिःश्यामाऽथ गौरद्युतिः ॥ स्वल्पाहाररता विलासकुशला हंसस्वना गायनी।। सव्रीडा गुरुदेवपूजनता सा पद्मिनी प्रोच्यते ॥ १ ॥ अर्थ-पूर्ण चंद्रमाके समान मुख जिसका, मृग (हिरण) के समान नेत्र जिसके, एवं कठोर हैं स्तन जिसके, बुद्धिमती, कोमल अंगवा- ली, खिले हुए कमलकी सुगन्धिवाली, श्याम अथवा गौर वर्णवाली, थोडा भोजन करनेवाली, कामक्रीडामें चतुर, हँसके समान शब्द जिसका तथा गान करनेवाली, और लाजसे युक्त व गुरुदेवताओंकी पूजामें तत्पर इन लक्षणोंवाली स्त्री पद्मिनी कही है ॥ १ ॥ । चित्रिणीलक्षण ।। श्यामा पद्ममुखी कुरङ्गनयना क्षामोदरी वत्सला। संगीतागमवेदनी वरतनुस्तुङ्गस्तनी शिल्पिनी॥ बाह्यालापरता मतङ्गजगतिः सत्कुंकुमार्दस्तनी । मत्तेयं कविमाधवेन कथिता चित्रोपमा चित्रिणी॥२॥ अर्थ-श्यामा (सोलह वर्षकी अवस्थावाली जिसको बालार्भ