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सामुद्रिकशास्त्रम् । कहते हैं अथवा शीतकाले भवेदुष्णा ग्रीष्मे वा सुखशीतला । तप्तकांचनवर्णाभा सा स्री श्यामेति कीर्तिता।.' अर्थ-शति कालमें जिसका शरीर गरम हो, गरमके समयमें जिसकी देह सुखशतल होवे और तपाये हुए सुवर्णके समान कान्ति जिसकी ऐसी स्त्री श्यामा कही है तथा कमलसमान मुखवाली, मृगके सदृश नेत्रों- वाली, सूक्ष्म उदरवाली, प्यारी मूर्ती जिसकी तथा गानाविद्याको जाननेवाली, उत्तम शरीर, ऊंचे स्तनवाली, चित्रविद्यामें चतुर, इधर उधरकी बात करनेवाली, हाथीके बच्चेके समान गतिवाली, कुंकुममदवाली कविमाधवने चित्रकी नाई चित्रिणी कथन करी है, अर्थात् पूर्वाक्त लक्षणोंवाली स्त्रीको चित्रिणी कहते हैं ॥२॥ | शंखिनीलक्षण । सूक्ष्मांगी कुटिलेक्षणा लघुकचा सम्भोगसम्वर्धनी।। प्रायो दीर्घकचा स्वभावपिशुना कष्टोपभोग्या रतौ ॥ पिङ्गालोलगतिश्च बर्वरकृतप्राङ्गार्चनाहादिनी। नानास्थाननखप्रचिह्निततनूः सेयं मता शंखिनी ॥ ३ ॥ अर्थ-सुक्ष्म शरीरवाली, टेढे नेत्रोंवाली, छोटे छोटे स्तनोंवाली, रतिक्रीडा बढानेवाली, लम्बे लम्बे बालोंवाली, खोटे स्वभाववाली, रतिसमयमें कष्टसे भागी जानेवाली, पिंगलवर्ण, चंचलगति, पीले चन्दनसे चर्चेत अंगोंवाली; तथा अनेक स्थानों पर नखकरके चिह्नित दहेवाली ऐसे लक्षणवाली स्त्रीको शंखिनी कहते हैं ॥३॥ । हस्तिनीलक्षण ।। पीनस्वतल्पनुभृशं मृदुगतिः क्रूरा नमत्कन्धरा स्तोक पिंगल्कुन्तला पृथुकुचा लजाविहीनान- ना। बिम्बोष्टी वहुभोज्यभोजनरुचिः कष्टेकसा- भापाटीकासहितन् । ध्या रती गौराड़ी करिदानगन्धरुचिरा सेयं मता हस्तिनी॥४॥ अर्थ-कठोर और सुक्ष्म शरीरवाली, मन्दगतिवाली, क्राघवृत्ति- वाली, चलते समय ऊंचे नीचे कन्धोंवाली, छोटे छोटे पिंगलवण केश जिसके, बडे बडे कुचोंवाली, लाजरहित मुखवाली, कुंदरुकी नाई होठ जिसके तथा बहुत भोज्य पदाथको भोजन करने की रुचि जिसकी, कामक्रीडामें कष्टसे भोगी जानेवाली, जिस प्रकार हाथीके मद चूता है उसी प्रकार स्रव होनेवाली, ऐसे लक्षणवाली स्त्रीको हस्तिनी कहते हैं॥ ४ ॥ कृत्यालक्षण ।। कलहप्रिया, स्थूलशरीरवाली, अतिक्रोधवाली, श्यामवर्ण, लम्बे २ होठ व छोटी नाकवाली, शिथिल स्तनविभाग, सुखी कमर वाली, ऊंचे पेटवाली तथा तमोगुणवाली स्त्रीको कृत्या कहते हैं । । पुरुषलक्षण ।। देवगन्धर्वयक्षाणां ये राक्षसपिशाचयोः॥ लक्षणैः संयुतास्ते स्युर्मरास्तै रेव नामाभिः ॥ १ ॥ अर्थ-पुरुप पांच प्रकारके होते हैं १ देव, २ ग धर्व, ३ यक्ष, ४ राक्षस, ५ पिशाच इन लक्षणोंवाले मनुष्य उसी नामवाले कहते हैं। अब संक्षेप रीति से पंच महापुरुषों के लक्षण कहते हैं ॥ १॥ । देवपुरुषलक्षण । दाता, सत्यवादी, ज्ञानी, शूर, पवित्र, सत्यप्रिय, सुवर्णसमान कान्तिमान, मेघसमान गम्भर शब्दवाला, लम्बी भुजावाला। बलवान्, कामकाधसे रहित, मधुरभोजी, सुगन्धियुक्त, मृगकी गतिके समान चंचल, कमलनयन, साधु स्वभाव, सुन्दर रूप, भग- अर्थ सुनवाली,लवाली, कि स्थानोंपर ॥३॥