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९२ सामुद्रिकशास्त्रम् ।। वद्भक्त, सतोगुणी इन लक्षणोंसे युक्त मनुष्यको देवसंज्ञक जानना ऐसा कहा है ॥ गन्धर्वमनुष्यलक्षण । श्याम अथवा चम्पकके समान वर्ण, सत रज इन दो गुणसे युक्त, रूपवान्, गुणवान्, पवित्रतासे युक्त, गाविद्यामें प्रविण. उत्तम और मधुर भाषण करनेवाला, खट्टे और मीठे भोजनमें रुचिवाला, सवसे मित्रभाव वर्तनेवाला, जिस पुरुषमें ये लक्षण हों। उसको गन्धर्वसंज्ञक जानना ॥ यक्षपुरुषलक्षण । दयावान्, दीन जनोंकी रक्षा करनेका स्वभाव जिसका, पुष्ट- शरीर, थोडे रोम, रज तम इन दो लक्षणों से युक्त, लाल रंगकेसे नेत्र, शरीरको गुलाबी रंग, सिंहसमान गर्जनायुक्त संभापण, धनवान्, अचलमति इन लक्षणांवाले मनुष्यको यक्षसंज्ञक जानना ॥ । राक्षसमनुष्यलक्षण । शरीरका रक्तश्यामवर्ण, भयानकमुख व दाढे, स्थूल व लम्बा शरीर, तमोगुणी, शीघ्र कोप करनेवाला, कामी, क्रोधी, निर्दय स्वभाव, बिलावके समान नेत्र, दुर्मति, मदिरा पान करनेवाला, देवनंज्ञावाले मनुष्यसे वैर करनेवाला, कठोरचित्त इन लक्षणोंसे युक्त पुरुषको राक्षससंज्ञक जानना ॥ पिशाचमनुष्यलक्षण। अति कोप करनेवाला, बहुत भोजन करनेवाला, दयाहीन, क्रूर- स्वभाव, दुष्टमतिवाला, मलीनवेष, कुरूप, अति कटु व अम्ल- भाजी, कोएके समान शब्दवाला, बकरीके सदृश गन्धवाला, पापी, विश्वासघाती इन लक्षणसे युक्त मनुष्यको पिशाचसंज्ञक जानना ॥ भाषाटीकासहितम् । पांच प्रकारकी स्त्रियां। पद्मिनीको देवी, चित्रिणीको गन्धर्वपत्नी (अप्सरा ) समान, शंखिनी यक्षिणी, हस्तिनीको राक्षसी, कृत्याको पिशाचिनी संज्ञा- वाली जानना, अर्थात् देवताके समान लक्षण होने से देवी, गन्धर्व समान लक्षण हानेसे अप्सरा, यक्षके समान लक्षण होनेसे यक्षिणी, राक्षसके समान लक्षण होनेसे राक्षसी, पिशाचके समान लक्षण होने से कृत्या कहते हैं। एकही लक्षणवाले पुरुष व स्त्रीका संयोग ठीक होता है, विरुद्ध लक्षणोंवाले स्त्री पुरुषमें परस्पर कलह ईप व द्वेष रहता है, विरुद्ध संयोगही अनर्थका हेतु है, भावार्थ यह कि यदि देव, गन्धर्व लक्षणवाले पुरुषका विवाह देवी वा अप्सरालक्षणवाली स्त्रीके साथ होता है तो आनन्दके साथ दिन व्यतीत होते हैं और यदि देव पुरुप हो और राक्षसी वा कृत्या स्त्री हो तो विवाह हुनेसे महादुःख रहता है, इस कारण इन लक्षणोंको देखकर जहांतक हो सके समान लक्षणोंसे युक्त नर नारीका विवाहसम्बन्ध करना अन्य- था दुःख, शोक, कलह उत्पन्न होकर दोनोंका जन्म निरर्थक हो जाता है ॥ | तरुण स्त्रीको प्रशंसा ।। वृद्धोऽपि तरुणीं गत्वा तरुणत्वमवाप्नुयात् ॥ वयोऽधिकां स्त्रियं गत्वा तरुणः स्थविरायते ॥ १॥ अर्थ-वृद्ध अवस्थावाला पुरुष यदि युवा अवस्थावाली स्वीके साथ रमण करनको पाता है तो तरुणहा जाता है और अधिक आयु- वाली स्त्रीके साथ रमण करने से तरुण पुरुष बुढा हो जाता है ॥ ३ ॥ चक्रविचार । चौपाई॥ एक चक्र वाचाल वखाने के दुइश चक्र चलते पिछाने ।