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१४ सामुद्रिक शास्त्रम् । तीनि चक्र वाणिज धन होवे * चारि चक्र दारिदु जन जोवे ॥ पांच चक सर्वांग विलासा के पष्ठ चक्र रस काम हुलासा ॥ सात चक्र बहु सुखको पुंजा ॐ आठ चक्र रोगी तन कंजा ॥ नव चक्रनसे राजहि करे * दशवां चक्र सिद्ध पग धेरै॥१॥ शंखविचार ।। चौपाई। एक शंख नर सुखी कराई ॐ द्वितिय शंख दारिद समुदाई ॥ तीनि शंख गुणहीन बखाने के चारि शंखते बहु गुण जाने ॥ पांच शंखते निर्धन होई ॐ छठा शंख जाने सब कोई ॥२॥ दोहा-सात आदि अरु अंत देश, इतने शंख जु आय ।। राजा कहिये दासको, चलै निसान बजाय ॥ ३ ॥ । शोपविचार ।। चौपाई। एक शीप गुणवन्त जु होय # दोय शीप वक्ता जग होय ॥ तीनि शीप धन संग्रह करे ॐ चारि शीप यश गुण बहु धेरै॥४॥ दोहा-चारि शीपते अधिक जो, दशपर्यंत जो होय । ऋद्धि सिद्धिसे सुख करे, महा पुरुष जग जोय ॥ ६ ॥ कररेखा। पहुँचा मह रेखा इक हाव ३६ राज्य भोग सुखसे जग सोवै ।। रेखा पहुंचा दुइ यदि जान 8 वक्ता गुणि धनवंत बखानी ॥ तीनि रेख पहुंचा महँ देखा & महासुखी कर्ता जग लेखा ॥ चारि रेख पहुंचा माँ आई महाकए दुःखी जग जाई॥६॥ दोहा-लक्षण रेखा कमेकी, अंगुलिनमाह विचार ।। चारि चारि गनि लीजिये, जान सुखको सार ।। ७॥ भाषादीकासहितम् ।। आठ चौक बत्तीस है, लक्षण जाना सोय । सुख दुख ए जग आयके, भोग करे सब कोय ॥ ८ ॥ जाके हाथ इकतीस है, नहिं होवे बत्तीस । सो प्राणी दुःखी रहे, कर्म न जाने ईश ॥ ९॥ जाके कर तेंतीस है, गनती होय छतीस । अन धन लक्ष्मी संपदा, कर्मतें जाने ईश ॥ १० ॥ करतलरेखा जाहि सब, परे मुष्टिके माहिं । अतिभागी त्यहि जानिये, ये लक्षण हैं जाहि ॥ ११ ॥ ऋद्धि सिद्धि दाता सुखी, वह जानो सब कोय । मुष्टि बीच रेखा सवे, रहे सो राजा होय ॥ १२ ॥ जाके बामे तिल वसे, महादुखीकी खान । निशिदिन चिन्तामें रहे, कहे समुद्र बखान ॥ १३ ॥ नखविचार । । दोहा-अरुणो नख ज्यहि पुरुपको, भोगी सुखकी खान । पुत्रवान धनवान गृह, और होय सन्मान ॥ १४ ॥ नख कारो जिस पुरुषको, वाके होय कुशील । महादुखी सो जानिये, सबसे रहे दुशील ॥१५॥ नख सपेद जा पुरुपके, बडो दुखी सो होय । ज्वरपीडा व्याप सदा, सुखी न होवे सोय ॥ १६॥ पीत वर्ण नख पुरुषको, सो परदेश कराय।। ना घर ना वाहूर रहै, चिन्ताके वश थाय ॥ १७ ॥ लाल नयन नख पुरुष ज्यहि, तेजवंत सो होय ।। महादुखी सो जानिये, शुभ लक्षण सत्र काय ॥ १८ ॥ हरित वर्ण नख जासुके, सो पापी जिय जानि । सदा दुखी वह जानिये, कहे समुद्र पखानि ॥ १९॥