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सामुद्रिकशास्वम् । हुस्तविचार । दोहा-जा नरको कर देखिये, फणाकार सो होय । धनसंग्रह भोगी सुखी, यह जानौ सब कोय ॥२०॥ जा नरको कर देखिये, पत्रकार जु होय । राजभोग सो नर करे, यह जानौं सव कोय ॥२१॥ जा नरको कर देखिये, मंडलाकार सो होय ।। नित सिवकाई सो करे, यह जानौ सब कोय ॥२२॥ भुजालझण।। दोहा-लम्बी भुजा विचित्र नर, छोटी भुजका दास । हाय सुशील सुहावना, भुज समान परकास ॥२३॥ लम्बी भुजा जु दाहिनी, वडो शूर सो जान ।। वाई भुज लम्बी रहे, त्यहि कपटी पहिचान ॥२४॥ सामुद्रिक पुस्तक लिखी शोभनाथ हषय ।। संग्रह कर सजन हित, थापि धरयो मन लाय ॥२६॥ कान्यकुब्ज भूसुर प्रगट, कान्यकुब्जके माहि ।। मिश्रवंश अवतंसवर, शोभनाथ गुरुपाहि ॥ २६ ॥ अतिश्रम कार ज्योतिष पढी, कृपा कीन गुरुदेव ।। विन गुरुदाया जगतम, कठिन जानिदो भेव ॥२७॥ '. इति श्रीमत्पण्डितशोभनाथसंग्रहीत सामुद्रिकशास्त्र उत्तरखंडः समाप्तः । समाप्तोऽयं ग्रन्थः । पुस्तक मिलने का ठिकाना- गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास, लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर” छापाखाना, कल्याण-मुंबई.