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श्रीवाल्मीकीयरामायण तीन दीकासहित । भगवान् भवत्सल, भयज्ञाता, भानुकुलभूषण, मर्यादापृरुषोत्तम महा- राज रामचन्द्रजीके गुणसागरको गरम भरदेना नहीं बन सकता है तथापि आदि कावे ब्रह्मर्षि वाल्मकिजीने अपनी रामायणरूपी गागरो भक्तिका, ज्ञानको धमका, सहित्यका; वीरताका, न्यायका लागर बना दिया । है। इस छोटे से विज्ञापनमें वाल्मीकीय रामायणकै गुणाका गान करके सूर्य को । दीपक लेकर दिखाता है। रामायण भक्तिका सागर है, मोक्षका मात्र है। और हिन्दुका सर्वस्व है। वहीं ग्रन्थ संस्कृती तीन का सति । हमारे यहाँ बिकनेको प्रस्तुत है। इसमें या तो रामानुजी, तनि श्लोकी ६.र। गोविन्दराजय भूषण तीन टीकायं प्रकाशित हैं परन्तु मुख्य भूषण है ।। भूण क्या है वास्तवमै दीकाकार बडी पतासे श्नति स्मृतिपुर तिहास, धर्मशास्त्र, व्याकरण, छन्द अलंकार इत्यादिके प्रमाणसे दिव्यस्वरूप राम्चे- जीके दिव्यचरित्रमाली आदि कवि बाकी किजीकी दिव्य देहको दिव्यही भुषण पहना दिये हैं उन्हीं दिव्य स्वर्णभरणाम तानेझाक टीका कुंदन का । काम देकर मना सोने सुगन्धि मिला रही है। भूषपाटीकाका श्रीमान् । ३ इदर गोविन्दराजको स्वसमें पवन तनय हनुमान नै जरा विदेश किया | या जाती अनुसार इस काका विEि३त सिद्धान्तले रचा हुई है। दो- • का अवश्य विशिष्टाद्वैत मतको ३ गतु क्या शुद्ध ती; क्या विशिष्टता और क्या इतर विद्वान् सबही इसका मुक्तकंठ प्रशंसा करते हैं। ऐसी सर्वे लंकृत संस्कृत टीकाके युः रामायण समस्त विद्वानोक इम विराजकर भगवान रामचंद्रजीके चरित्रके पठन पाठन, झवण की तैन । | हिन्दू जातिको पवित्र कर उनके त्रिविधताका नाश करती हुई उन्हें भजसा । गरसे अनायास पार कर दें इलिये हमने इसका मुख्य घटाकर ३५ वी जगई। १६ रहे हैं। चामोसमें रामायण दान करनेक वडा फल है इस रवैये | धार्मिक हिन्दुको यह ग्रंथ खरीदकर धमक्षतिका परिचय देना चाहिये ।। पुस्तक मिलनेका ठिकाना- | गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास “मीवेंकटेश्वर ” छापाखाना, कल्याण-मुंबई