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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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बृहत्स्तोत्ररत्नाकरे - प्रथमभागः

॥ रावणकृतशिवताण्डवस्तोत्रम् ॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निल्लिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरदिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
कचिच्चिदम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तुं भूतभर्तरि ॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।