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पुटमेतत् सुपुष्टितम्

रावणकृतशिवताण्डवस्तोत्रम् २४५

विमुक्तलोललोचनाललामफाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १२
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम् ।
हरे गुरौ स भक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां तु शङ्करस्य चिन्तनम् ॥ १३
पूजावसानसमये दशवक्रगीतं
यः शम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥ १४
॥ इति श्रीरावणविरचितं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥