विधिः स्खसिद्धिनिष्ठो वा, पू विधिमाचक्षते धीराःपू विधिरन्योऽनवस्थानात्, उ विधिनरूपितपदः, उ विधिनिर्विषयस्तुल्यम्, पू विधिनैवं कस्य हेतोः, उ विधेर्विना कार्यकन्यम् , पू विध्यर्थसिद्धये वेदे, उ विनियोगस्तत्र तेन, पू विनियोगादधिगतिः, पू विपर्ययानभ्युपाये, उ विपर्यये फलाभावःपू विपर्यये हि नितराम्, पू घिषर्ययो न हि भवेत्पू विपर्ययोऽन्यं स्मरतः, पू विलक्षणत्वमरुपत्वे, उ विवेकग्रहणाभावात्, उ बिबेकविज्ञानमिदम्,. उ विशिष्टस्य च नास्त्यन्यत, उ विशिष्टान्यक्रियाबोधःपू विशिष्टार्थगतिर्भान्तिः, पू विशिष्टार्थप्रयुक्ता हि, उ विशेषज्ञानतोऽध्यक्षे, उ विशेषस्मरणान्नापि, उ विशेषे न हि गम्येत, पू विषय न नः ययासिड, पू बेवे नियोगनिष्ठत्वम्, पू |
पुट. काण्ड. कारिका 185 110 114 98 75 1B5 8 109 102 74 102 75 78 10 101 81 20 1853 111 142 8 148 । 14B 8 157 145 8 154 1B9 8 129 189 8 125 98 66 142 3 146 142 8 142 98 46 1835 B 11B 1018 78 11A 90 102 74 139 126 140 3: 1B2 80 17 108 77 82 22 |
पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२८५
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
34
ब्रह्मसिद्धिकारिकानुक्रमणिका