सवप्रत्ययवद्य व, पू सर्वात्मना त्वनुगमः, उ सर्वात्मनाथ ज्ञानेन, पू सर्वाविद्याप्रविलये, उ सर्वा आग्रहमाधेन, पू सापेक्षतायाः को हेतुः, पू सामानाधिकरण्येन, पू सामान्यं न हि वस्त्वात्मा, पू सामान्यदृष्टया रजतात्, पू सामन्यरूपभूयस्त्वं, पू सामान्येन पदार्थत्वे, पू सोपायमन्यत् तद्ददस्, पू . स्मर्यमाणे प्रचलितम्, उ स्सृतं प्रत्यक्षतो भिन्नम्, पू स्मृतद्वयाविवेकोत्थम् , उ स्मृतिरित्यपि विज्ञानम्, उ स्यादक्षमपि मापक्षम्, उ स्याञ्चिङ्गमपि सापेक्षम्, उ खरूपनिष्ठाच्छब्दातु, पू सरूपानर्पणादेवम् , पू वर्गकामो यजेते ति, पू खसंबन्धितया मानम्, पू खात्मस्थितिः सुप्रशान्ता, उ हन्त तर्हि खरूपे तत् , पू ... हन्तास्य गोचरो नास्मात् उ • इन्तैकस्यैव तकि न, पू हेमेव पारित्र्यादि, उ |
पुट. काण्ड. कारिका 157 4 97 82 141 8 1B8 12B 107 142 3 142 79 15 144 8 150 68 2 21 142 3 145 98 68 156 4 115 101 88 B9 1B8 124 189 8 12b 140 8 13B 81 18 86 3B 153 - 8 - 181 146 108 1463 75 86 B2 16 108 9 112 94 88 25 61 14 |
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ब्रह्मसिद्धिकारिकानुक्रमणिका