व्याख्या Page. 72 294 Brh. 4-4-21. न ह्यनध्यात्मवित् कश्चित् नानुध्यायाद्वन् नान्यत्र सर्वेसत्यागात् नान्योऽस्ति द्रष्टा .. नायं हन्ति न हन्यते ... 2x २ १ २ २ ! २ 256 Brh 3-7-28. 83 G5t६. 219. 244 Mund. 1-1-6, नित्यं विभुमू निदिध्यासितव्यः 97,298, 294 Brh. 2-4-5. निवेकपक 162 . Var. Page 171. 245 Naryapa. 2. निष्कलः निष्कलं निष्क्रियम् .. नेह नानास्ति 88, 95 Sv€ta. 6–19. 23 Brh. 4-4 19. पञ्च पञ्चनखः 76 R%m&yapa 4-17-87. 289 K16. Vaz¥ . Page. 482. 80 C. B¢h. 4-88. 252 Brahm. St. 4-1-14A 8B Sld. VarPage 662. पदमभ्यधिकाभावात् परमो जेष आनन्दः पाते तु पुरुषस्य च शुद्धस्य • पुरुषाशक्तितस्तत्र • पूर्वं पूर्वं मिथ्या पूषा प्रपिष्टभागः पौर्वापर्यं पूर्वदौर्बल्यम्, प्रजहाति यदा कामान् 217 do. do. 74. 11 ... 62, 298, 295 Tait. Sam. 2•6-8. 110, 119 M. Bu. 6-5-54, 262 Gita. 2 65, ... 125, 268 Tait, Karh, 2•1-1. 124 Cf. Tait. Bra 2-8-3. 288 Brh. 4-4-21A 88 °C. Tand. Brk. 28-2-4. प्रजापतिस्तपोऽतप्यत प्रज्ञां कुर्वीत प्रतितिष्ठन्ते प्रथमाध्याये प्रमाणलक्षण म्। प्रदीपस्येव निर्वाण प्रांणा वै सत्यम् 295 Sab. Bhag. 2-1-1. 28 255 B¢h, 2-8-6.
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