मध्यमाधिकारः &५ मनेऽपवतिते कार्यं तदा लजिघतुल्यवः पुनवेषन्ते तावहर्गणौ भविष्यत इति दिक् । विषयोऽयं वटेश्वरसिद्धान्तेऽपि मया प्रदशितोस्तीति । अब वषेशानयन और लघ्वहर्गणानयन कहते हैं । हि- भा.--कल्पादि से जो गतवर्ष है उसका और गतवर्षसम्बन्धि दिलाद्यों का योग सूर्यादि वर्षपति होते हैं । कल्पगतवर्ष और कल्पनहभगण के घात (गुणनफल) को कल्पवर्ष से भाग देने से जो फल होता है वह सूर्यभगणान्त में (रविवर्षान्त में) मध्यमग्रह होते हैं। चैत्रशुक्लप्रतिपदादि से वर्तमान मास की इष्टतिथि पर्यन्त जो तिथियां हैं उनमें शुद्धि को घटा देने से जो हो उसको दो स्थान में स्थापित करना, एक स्थान में उसे ग्यारह ११ से गुण देन, वर्षादिक्षयशेष को ६७२ इनसे गुण कर अपने हर ४६०० से भाग देकर जो फल हो उसे ग्यारह गुणित शुद्धि रहित इष्टतिथि में जोड़ देना ७०३ इनसे भाग देने से जो लब्धि अबम हो उसको पूर्वस्थापित (द्वितीय स्थान स्थित शुद्धि रहित इष्टतिथि) में घटाने से रविमेषादि (जस काल में रविमेष में जाते हैं उस काल) से अहर्गण (लघ्वहणंण) होता है, इसको सात से भाग देने से जो शेष रहता है वह अब्दपत्यादि (वर्षापत्यादि) होते हैं।४२-४३॥ एक वर्ष में सावनदिनादि=३६५।१५३०२२३०, इष्टवर्षान्त में सावनदिनादि= गव (३६५१५३०२२३०)=गवx३६५+व (१५३०२२।३०)= गव ३६५ +गतवर्षे संदिनादि= कल्पादि से इष्टवर्षान्त में सावनाहर्गण इसमें दिनादिबोधक द्वितीय खण्ड ही है, आनीत सावनाहगंण में सात से भाग देने जो शेष रहता है वह रव्यादि वयं पति होते हैं कल्पादि में रविवार था इसलिये रवि ही से गणना करते हैं, अब रविभगणान्त (रविवर्धन्त) में प्रहानयन के लिये अनुपात करते हैं यदि कल्पवर्षों में कल्पग्रह भगण पाते हैं तो गतवर्ष में क्या इस अनुपात से रविवर्षान्त में मध्यमग्रह आते हैं, इससे आचार्योक्त उपपन्न हुआ ४१॥ लघ्वहणेण साधन के लिये वर्षादि से गतिथि-इष्टतिथि-अधिशेति; तथा स्वल्पान्तर दिनों में ग्यारह ११ अवम होते हैं यह मानकर अनुपात ‘यदि से ७०३ चन्द्र ७०३ चान्द्रदिनों में ग्यारह ११ अवम पाते हैं तो वर्षदि से गततिथि में क्या इससे जो फल आता है । उसमें वर्षादिक्षय शेष जोड़ने से पूरे अवम होते हैं, उसका स्वरूप वह है जैसे ११ (इष्टति –अधिशेति ), वर्षादिक्षरे ७०३ ६६००
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