ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते ७०३ वक्षशे =११ (इष्टति-अधिशेति) + ९६०० ७०३ ११ वक्षशे ६६२ ११ (इष्टति-अचिरोति+वक्षशे )+- &६०० ६६०० ७०३ ११ {इष्टति -(अधिशेति - अवक्षो )} + ६६२ वक्षशे ६०० १६०० ७० ३ ६६२ वक्षशे ११ (इष्टति-शुद्धि)+ *१४ ७०३
- लघ्वहण=(इष्टति-शुद्धि)-अवम इससे आचायत उपपन्न हुआ ॥४३-४४।।
लघ्वहगण कब सावयव और निरवयव होता है इसके लिये विचार करते हैं । जब अवमशेष का अभाव होगा तब सूर्योदय-अमान्त और वर्षान्त के एक ही स्थान में रहने के कारण चान्द्राहर्गण-सौराहर्गण और सावनाहगीण निरवयव होगें यह सिद्ध हुआ। कल्प में निरग्रलक्षण कितने होते हैं इसके लिये विचार-जब निरग्रलक्षण हैं तब अहर्गणों (सौराहगैण-चान्द्राहर्गण धर स्रावनाहर्गण) के महत्तमपवर्तनाङ्ग उससे निकालना पूर्वोक्त अहर्गणों को अपतत करने से जो लब्धियां हों तत्तुल्य वर्षों में फिर फिर वे अहर्गण निरवयव होंगे । अपतत सौराहगंण मान कितने वर्षों में वर्षान्त में होता है उसके लिये विचार-सौराहण को महत्तमापवर्तनाक से अपतित करने से जितने दिने आर्षे उनको तीन सौ साठ ३६० से भाग देने से जो शेष रहे उसको जिस अझ से गुणने से तीन सौ साठ ३६० हो उसी गुणक तुल्य वर्षों में अपतित सौराहगण वर्षान्त में होगा यह सिद्ध हुआ । इसी तरह अपवत्तत चान्द्राहणंण और सावनाहगंण कितने वर्षों में वर्षान्त में होगें इसका भी विचार करना । जैसे सौराहणंण के साय चान्द्राहर्गण और सावनाहगण का महत्तमापवर्तनाय निकालना तब उस अपवर्तनाङ्क से चान्द्राहणंण और सावनाहर्गण को अपवत्तत करना तब लब्धि तुल्य वषों में फिर वे दोनों वर्षान्त में होगें । यह विषय वटेश्वर सिद्धान्त में भी मैंने लिखा है इति ॥४३-४४। इदानीमहर्गणग्रहानयनविवक्ष राद तावद्रविसितबुधानां कुजगुरुशनिशम्रो चानां चानयनायार्यामाह। छगणात्सप्तत्यंशं स्वनवाशदधिकं विशोध्यांशः मध्यबुधसूर्यसिताः शीघ्रोच्च कुलगुरूशनीनाम् ॥४॥