पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/१४२

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मध्यमाधिकारः १२५ R ६३२ वक्षयो ११ मु=प्टक्षयशेष । यदि ११ शु > ' सदाऽवमशेषप्रमागरमक ६०० भवेत्तदा लब्धिः = - इष्टक्षयरो, धनात्मकार्थमेकयोजनेन ६६२ वक्षरे , , ७०३+ ६२ वक्षयश_ -यु १+ = चैत्रादावमशेषम-


- नम् । यदिचैत्रशुक्लादो रविवर्दान्तात्पूर्वमेव भवेत्तदा विलोमाहर्गणो भवति लल्ल- चार्यादिभिरयमेव चैत्रादावृणहर्गणः कथ्यत इति । सिद्धान्तशेखरे ‘शुद्धिमेत्र पृथगी २वराहत शोधयेदवमशेषकात्निजदित्यादिना' ऽयमेव ब्रह्मगुप्तोक्तप्रकारः श्रीपतिना लि स्रितो विवेचकैलंय इति ।। ५८ ।। अब रविवर्दान्त और चैश्वाद के मध्य में कितने सावनदिन हैं उनका साघन करते हैं। हि- भा.-श्रवमशेष रविवर्षान्त में जो क्षयरोष है उसको ६२ इससे गुणाकर अपने हर ( ३६०० ) से भाग देने से जो फल होता है, में पूर्वकथित शुद्धि और ग्यारह के घात ( गुणनफल ) को घटा देने से सावनाहगंग की शुद्धि होती है अर्थात् “हृतास्त्रिखागैः फलावर्माविहीना इत्यादि आचार्योक्त प्रकार से चैत्रादि में सावनाहर्गण की सिद्धि होती है । यदि अवमशेष में शुद्धि और ग्यारह की घात न घटे तब रविव पन्त में कम से जितने अवम हों उनमें एक घटाकर श्रवमशेष में ७०३ जोड़कर जो हो उसमें उस घात गुणनफल) को घटा देना चाहिये इति ॥५८।। उपपत्ति चैत्रादितिथि= ० तव विपरीत शोधन ने चैत्रादिगति-शुद्धिः = ०-शुद्धिः शुद्धि, तब ‘अवमांशेभ्यो यमनवरसगुणितेभ्य इत्यादि श्राचार्योक्त प्रकार से अवमशेष ६३२ वक्षयशे ६३२ वक्षयशे स्वरूप - ११ शुद्धि, यदि ११ शुद्धि> तब अवमशेष प्रमाण २६०० ९६०० ७०३ ऋणारमक होता है, तब लब्धि=~ इष्टक्षयशे = – अवमशे, धनात्मक के लिये एक जोड़ने से = ६६२ वक्षयशे ११ शहि ६२ वक्षय ११ शुद्धि+७०३ ३६०० १+ = चैत्रादि में ७०३ ७० अवमशे, यदि चैत्र शुक्लादि रविवर्दान्त से पहले हो तब विलोमाहर्गण होता है, इसी को लल्लाचार्य आदि आचार्य चैत्रादि में ऋणहर्गण कहते हैं । सिद्धान्तोखर में श्रीपति शुद्धि मेव पृथगीदवराहतां शोधयेदवमशेषकालिजाब् इत्यादि’ से ब्रह्मगुप्तोक्त प्रकार ही कहते हैं इसको विवेचक लोग समझे इति ॥५८॥