पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/२०७

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१६० दपि ज्ञायते, सर्वे आकाशस्था ग्रहादयो वायुगोले परिणता अस्माकं प्रत्यक्षीभूताः स्पष्टा भवन्ति, तेन स्पष्टीकरणेन ये स्पष्टग्रहाः समागच्छन्ति तेषु यावता संस्कारेण भूवायुगोलपरिणताः स्पष्टग्रहा भवेयुस्तस्यैव नाम नतकमं; ब्रह्मगुप्तत: प्राचीनाः सूर्यसिद्धान्तकाराऽऽर्यभटप्रभृतिभिरेतत्सम्बन्धे स्वस्वसिद्धान्तेन किमपि लिखित वन्तः। मन्मते नतकर्मसंस्कारस्यातीवाऽऽवश्यकता प्रतीयते, विषयेऽस्मिन् सारासार विचारदक्षा ज्यौतिषिका भृशं विचारयन्त्विति ॥२४। अब रवि और चन्द्र के स्पष्टीकरण के सम्बन्ध में विशेष कहते हैं। हि- भा.-रवि और चन्द्र का दिनार्ध परिधियों से देशान्तरादि द्वारा स्फुटीकरण कर के उन स्पष्टरबि और स्पष्टचन्द से ग्रहण में तिथ्यन्त साधन करना,उस तिथ्यन्त कालिक रवि और चन्द्र के स्पष्ट परिधियों से स्पष्ट रवि और स्पष्ट चन्द्र साधन करना, उन स्पष्ट रवि और स्पष्ट चन्द्र से पुनः तिथ्यन्त साधन करना, पुनः स्पष्ट परिधियों से स्पष्टरवि और स्पष्ट चन्द्र साधन करना, इस तरह बारबार करने से ग्रहण के लिये उपयुक्त स्पष्ट रवि और स्पष्ट चन्द्र होते हैं, आचार्य जी के इस अभिप्राय का भास्कराचार्य ने विशदरूप से प्रतिपादन किया है इसीलिये सिद्धान्त शिरोमणि में मुहुः स्फुटाऽतो ग्रहणे रवीन्द्वोस्तिथिस्त्विदं जिष्णुसुतो जगाद' भास्कराचार्य कहते हैं ।२४।। आचार्योंक्त नतकर्म सकृत्प्रकार से भी हो सकता है जैसे गणितागत तिथ्यन्त काल और असकृत्प्रकार से साधित नत कर्म संस्कृत रवि और चन्द्र से उत्पन्न तिथ्यन्त काल के अन्तर घट्यात्मक मान मानते हैं (य) एतत्सम्बन्धि अंश=६ य, गणितागत तिच्यन्त काल में रवि के नत कालांश=न, इन दोनों के संस्कार करने से वास्तवनतकालांश= न=+६य, तब अनु पात करते हैं, यद साठ घटी में रवि और चन्द्र की गत्यन्तर कसा पाते हैं तो (य) घटी में क्या इस से य घटी में रवि और चन्द्र की अन्तर कला आती है, य (चंगक-गक) चंगक-रगक यXग, यहां = ग. । ‘तिथ्यन्तनाडीनतबाहुमौब्र्या L= इत्यादि’ भास्करोक्तप्रकार से सूर्य के नतकर्म= रफ $ज्या (न-+६य) = रफx ज्या ४६२० चंफX ज्या (न=+&य ) (न-+६य ), यहाँ २९ =-रफ, तथा चन्द्र के नतकमें ४२० ४३७५ चंफ =चंफ४ज्या (न==६य), यहां = चंफ, इन दोनों का संस्कार पूर्व साधित अन्तर ४३७५ के बराबर होता है अन्यथा गणितागत रवि और चन्द्र के अन्तर और नतकर्म संस्कृत रवि और चन्द्र के अन्तर य घटषन्त में कैसे समान अन्तर को बनायेगा, अतः गझय चंद्ध, ज्या