स्पष्टाधिकारः ०१ कर्मान्तरं धनं भवति, पश्चिमकपले नतर्मरशो धनत्वद्विनं भवति । चन्द्रस्य पश्चिमक्रपाले मन्दफले ऋणे धने च नस्कर्म ऋशमेव भवत्यतः केन्द्र इत्रशान् क्षयधनहानिधनअनि फलनि जायन्ते, पूर्वरूपले प्रथमपादे ऋमिके मन्दफले केन्द्रज्याया उपचयत्व नतकर्मणो धनत्वाच्च ननकमन्तरं धनं भवति, द्वितीयपदे केन्द्रज्याया अपचयत्वान्नतकर्मान्तरमृणं, तृतीयपदे नन्दफलं धनं ननकर्म ऋणं केन्द्रज्यायाश्चोपचयोऽतो नतकर्मान्तरमृणम्, चतुर्थे पदे केन्द्रज्याया अपचयत्वान्नत कर्मणश्च क्षयत्व!न्नतकर्मान्तरं धनं भवति । दिनान्तरस्पष्टग्रहान्तरं स्पष्ट गति भवतीति नियमाद् गनदिननतकाल एव द्वितीयदिनेऽपि नतकालस्तेन केन्द्रज्या एवोपचयापचयवशन्नतकर्मान्तररूपद्वितीयगतिफनस्य धनयंत्वं समुचित मेवेति. ॥ ३० ।। अब नत कर्मवश से रवि और चन्द्र के गतिफल को कहते हैं। हि. भा.-दिनदलपरिधिस्फुटतिथिनतकेन्द्रज्या इत्यादि से अद्यतन और श्वस्तन फल विकलाओं के अन्तर (विकलात्मक अन्तर) पूर्वकपाल में पूर्वसाधितरविमन्दस्पष्ट गति में रवि के केन्द्रपदवश से ऋण, धन, ऋण, धन होता है । पश्चिम कपाल में विलोम होता है अर्थात् धन, ऋण, घन, ऋण, चन्द्र के पश्चिम कपाल में पूर्वत्रञ्च होता है अर्थात् ऋण, घन, ऋण, घन, और पूर्व कपाल में चन्द्रमन्दस्पष्टगति में वे ही धन, ऋण, ऋण, धन होते हैं ।।३०। उपपत्ति प्रयम पद में और तृतीय पद में केन्द्रज्या उपचीयमान रह्ती है और द्वितीय पद में तथा चतुर्थे पद में अपचीयमान रहती है; रवि के पूर्व काल में नतकर्म कृण और पश्चिम कपाल में घन होता है इसलिये प्रथम पद में और तृतीय पद में ऋणफल के उपचय के कारण नतकर्मान्तर ऋण होता है । द्वितीय और चतुर्थ पद में ऋण फल के अपचयत्व के कारण नतकर्मान्तर घन होता है, पश्चिम कपाल में नतकों के घनत्व के कारण विलोम (उल्टा) होता है, चन्द्र के पश्चिम कपाल में मुन्द फल के ऋण या घन रहने पर नतकर्म ऋण ही होता है । इसलिए केन्द्रपदवश से फल ऋण, धन, ऋण, घन होता है । द्वितीय पद में केन्द्रज्या के अपचयत्व के कारण नतकर्मान्तर ऋण होता है । तृतीय पद में मन्दफल घन, नतकर्म ऋण, केन्द्रज्या का अपचय रहता है। इस लिये नतकर्मान्तर ऋण होता है, चतुर्थे पद में केन्द्रज्या के अपचयत्व से और नतकों के क्षयत्व के कारण नतकर्मान्तर घन होता है । प्रद्यतन (आज के) श्वस्तन (कल के) स्पष्टग्रहों का अन्तर स्पष्ट गति है। इस नियम से गत- दिन का नतकल ही द्वितीय दिन में भी नतकाल होता है इसलिये केन्द्रज्या ही के उपचम और अपचय वश से नत फर्मान्तर रूप द्वितीय गति फल का घनत्व और ऋणत्व उचित हो है इति ॥३०॥
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