स्पष्टाधिकारः २०३ करणं सर्वकर्मोण्युक्तं सूक्ष्मत्वेन स्वीकृतम् । ‘मुहुः स्फुटाऽतो ग्रहणे रवीन्द्वोरित्या- दिना' भास्करेण यदाचार्यमतं वर्णितं वस्तुतस्तत्तन्मतं नास्तीति विज्ञौर्बोध्य- मिति ।।३२। अव व्यवहारोपयोगी रवि और चन्द्र के स्पष्टीकरण को कहते हैं हि.भा. - स्वदिनार्धपरिचि से पूर्वकथित विधि के अनुसार जो मन्दभुजफल होता है। उसके चाप (मन्दफल) को मध्यमरवि और मध्यमचन्द्र में संस्कार करके प्रन्य देशान्तरादि संस्कारों को पूर्ववत् करके व्यवहार के लिये वा इस तरह स्पष्टीकरण करना चाहिए। बिना नतकर्म संस्कार के आचार्य इस व्यवहारोपयोगी स्थूल स्पष्टीकरण को कहते हैं । 'भास्करा- चार्य ने रवि और चन्द्र के इस स्थूल स्पष्टीकरण को ही सूक्ष्म सब कमों के लिये उपयुक्त स्वीकार किया है, ‘मुहुः स्फुटाऽतो ग्रहणे रवीन्द्वोः इत्यादि से' भास्कराचार्य ने प्राचार्य, मत का भिन्न तरह प्रतिपादन किया है इति ॥३२॥ इदानीं मङ्गलादिग्रहस्पष्टीकरणे कारणमाह आर्यभटस्याज्ञानान्मध्यममन्दोच्चशीघ्रपरिधीनाम् । अस्पष्टा मौमाद्याः स्पष्टा ब्रह्मोक्तमध्योच्चैः ॥३३॥ व. भा. -नास्ति वासनाभाष्यमस्य श्लोकस्य ! वि. भा. - आर्यभटस्य मध्यममन्दोच्चशीघ्रपरिधीनामज्ञानात्कारणात्, भौमाद्या (मङ्गलादिकः) ग्रहाः अस्पष्टा भवन्त्यतो ब्रह्मो (ब्रह्मगुप्तो) क्तमध्योच्चै- भौमाद्याः स्पष्टाः कर्या अर्थादार्यभटस्य वास्तवमध्यममन्दोच्चादीनामज्ञानातन्मतेन भौमादिग्रहस्पष्टोकरणं न युक्तमतो मदुक्तवांस्तवमन्दोच्चद्यैस्तत्स्पष्टीकरणं विधेय- मित्याचार्याभिप्राय इति ।३३। अब मङ्गलादि ग्रहों के स्पष्टीकरण में कारण कहते हैं हि- भा. -आर्यभट को वास्तव मध्यममन्दोच्च-सीघ्र परिधियों का ज्ञान नहीं था इसलिये भौमादि (मङ्गल आदि) ग्रह उनके मत से स्पष्ट नहीं होते हैं । ब्रह्मा (ब्रह्मप्तो) क्त मन्दोच्चादि से वे स्पष्ट होते हैं, आचार्य के कहने का तात्पर्य यह है कि आर्यभट को मध्यम मन्दोच्च शीघ्र परिधियों का ज्ञान नहीं था इसलिये हमारे मन्दोच्चादि से कुजादि ग्रहों के स्पष्टीकरण करने से वे ठीक स्पष्ट होते हैं इति. ॥३३॥ इदानीं मङ्गलादिग्रहाणां मन्दशीघ्रपरिध्यंशान् स्फुटीकरणञ्वाह मन्दोच्चनीचवृत्तस्य परिधिभागाः सितस्य विषमान्ते । नवयुग्मान्ते रुद्राः ११ शीघ्रौजान्तेऽग्निरसयमलाः २६३ ॥३४॥
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