स्पष्टाधिकारः २४९ वनसम्पनगन 'श्र वप्रोतवन भ्र वान्नाड़ावृत्त यवन्नन्यशः । ध्रवायूवंस्वस्तिकं यावदुन्मण्डले नवन्यंगाः । नाडवून पूर्वस्वतक्राद् भ्र_वप्रवृत्तार्घवृत्त सम्पातं यवच्चरम् । एभिर्भजत्रयंस्त्यन्नमेकंचपो यत्रिभुजम् । श्रवान् क्षितिजाहे रात्रवृत्तसम्पातं यावद् भुवश्रोतवृत्त वयाचपम । नवदुन्मण्डलाद्रात्रवृनयोः सम्पातं यात्रद् युज्याचापम् अहोरात्रवृने झिझिजन्मण्डलयोरन्तरे कुज्यांग इति भुजत्रयंभुत्पन्नं द्वितीयत्रिभुजमेतयोस्त्रिभुजयोज्यक्षेत्रसजातीयादनुपतो यदि युज्यया सृज्या लभ्यते तदा त्रिज्यया कि समागच्छति चरज्या तत्स्वरूपम् अस्याश्चापम् चरासवः। रविभुजया, क्रानिज्या, द्युज्या, कुज्या कुज्य. त्रि चरच्य. इश्येवःत्र पञ्चज्या यदानयनं पूर्वी कृतम् । आचार्यमतेनाऽयनांशाभावोऽतो यथागतरविरेव साधितरविः। भास्करेण सायनभुजज्या साधिता, इत्येव तन्मते विशेष इति ॥ । ५५-५६-५७५८ ।। अव पश्चज्यानयन को कह्ते हैं हि.भा.-त्रि भुजयों को जिनज्या (परम क्रान्तिज्या) मे गुणा कर त्रिज्या से भाग देने मे लघि रवि की इष्ट क्रान्तिज्या होती है नाड़ी वृत्त मे सूर्य के उत्तर रहने से उसकी (क्रान्ति ज्या) की दिशा उत्तर होती है, और नाडीवृत्त से सूर्य के दक्षिण रहने में उसकी दिशा दक्षिण होती है । त्रिज्यावर्ग में से इष्ट क्रान्तिज्या वर्ग को घटाकर शेष का मूल अहोरात्र वृत्त का व्यासार्ध (य ज्या) होता हैं, इसकी दिशा भी क्रान्तिज्या की दिशा की तरह होती है, क्रान्ति ज्या को प लभा से गुणा कर द्वादश १२ से भाग देने से क्षितिज्या (सृज्या) होती है, इसको पृथक्कू स्थापन करना, उस कुज्या को त्रिज्या से गुणा कर दी.ज्या से भाग देने से क्षयवृदिज्या (चरज्या) होती है, इमका चाप चर प्राण (चरामु) होता है, अरामु की छः से भाग देने मे विनाड़ी (पल) होती है, नाड़ी (दड) को ६० से भाग देने से विनाड्रिक (पल) होती है इनि ।। ५५-५६-५७-५८ ।। उपपत्ति । क्रान्तिवृत्त में जहां रवि है उनके ऊपर ध्.वप्रोतवृत्त कर देना, नाडीवृत्त और क्रान्तिवृत के सम्पात (गोलसन्धि) से नवपंश व्यासार्ध से वृत्त (प्रयनश्रोतवृत्त) करना, तन दो चापीय खात्य त्रिभुज बनता है, गोल सन्धि से अयन प्रोतवृत्त कान्तिवृत्त के सम्पात पर्यंत क्रान्तिवृत्त में नवत्यंश एक मुज, गोल सन्धि से मथन शोत वृत्त नाडीवृत्त के सम्पात पर्यंत नाडीवृत्त में नवत्यंश द्वितीयमुब, नाडीवृत और क्रान्तिवृत्त के अन्तर्गत अयन श्रोत वृत्तीय बाप (पस क्रान्ति) तृतीय भुज; इन तीनों भुज से एक त्रिभुज बना, तथा गोलसन्धि से रविपयंत क्रान्तिधृत में रविक्षुबीश कर्ण एक भुज, रवि से रबिगत ,व श्रोतवृत्त के नाडीवृत्त सम्पात
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