ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते अयंन्त धृव श्रोतवृत्त में इष्ट क्रान्ति द्वितीय भुज गोल मन्धि से ध्र व श्रोतवृत्त नाडीवृत्त के सम्मान पर्यन्त नाड़ी मृत में विषुवांश कोटि तृतीय भुज, इन तीनों भुजों से द्वितीय त्रिभुज हुआ, इन दोनों वापीय जान्य त्रिभुज का ज्याक्षेत्र सजातीय होता है इसलिए पहले लघु त्रिभुज (द्वितीय त्रिभुज) का ज्यादैत्र करते हैं, गोल केन्द्र (केन्द्र) से गोलसन्धिगतरेखा कर देना उसके ऊपर रवि केन्द्र मे लम्ब रेखा रवि भुजज्या होती है, केन्द्र से नाडीवृत्त ध्रुव श्रोत वृत सम्पातगत रेखा करना, उस के ऊपर रत्रि केन्द्र से लम्ब रेखा क्रान्तिज्या (क्रान्ति चाप को ज्या) होती है, इन दोनों (भुजया प्रर क्रान्तिज्य) की मूल गत रेखा कर देना यह विषुवांरा चाप की ज्या नहीं है, भुजज्या, क्रान्ज्याि, तन्मूलगत रेखाओं से जो शिभुज होता है, बई उक्त चापीय जात्य त्रिभुज का ज्याक्षेत्र होता है नाड़ीत धरातल के ऊपर क्रान्ज्याि लम्ब हैं, तथा मूलगत रेखा नीटुन घरातलगत है इसलिए मूलगत रेखा के ऊपर भी क्रान्ज्याि लम्ब होती है ( धरातल के ऊपर रेखा लम्ब की परिभाषा से ) इसलिये उक्त त्रिभुज ; जात्य त्रिभुज हुआ, नाझी धूत और ध्र व श्रोत वृत्त के सम्पात मे गोलसन्धिगत रेखा के ऊपर लम्ब रेवा विषुवांश चाप की ज्था है, मूलगत रेखाा गोल मंन्धिगत रेखा के ऊपर लम्ब है, गोल केन्द्र से नाडीवृत्त ध्र व श्रोतzन सम्पातगत त्रिज्या कर्ण, विषुवांशज्या भुज, और विषुवाँ शज्या मूल से गोल केन्द्र पथं न्त विषुवांश कोटिज्या कोटि, इन तीनों भुजों से एक त्रिभुज हुआ तथा गोल केन्द्र से क्रान्तिज्या मूल पर्यन्त क्रान्ति की उन्नक्रमज्योन त्रिज्या (क्रान्तिकोटिज्या= व्रज्या) कण्, मूलगत रेखा भुज, और गोल केन्द्र से भुजज्या मूल पर्यन्त कोटि, इन तीनों भुजों से द्वितीय त्रिभुज हुआ, ये दोनों त्रिभुज सजातीय हैं इसलिए अनुपात करते हैं यदि त्रिज्या में विषुवांशज्या पाते हैं तो खूज्या में क्या इससे मूलगत रेखा आती है इससे सिद्ध होता है कि किसी भी चापीय जात्य त्रिभुज के ज्याक्षेत्र में कर्णचाप ज्या वास्तविक होती है, भुजचाप और कोटिचाप में किसी एक चाप की ज्या वास्तविक ही होती है, अन्य चाप की ज्या वास्तव नहीं होती है अर्थात् जिस चाप की ज्या वास्तविक होती है उसी के कोटिव्यासार्ध वृत्त में परिणत होती है, जैसे उपरिलिखित चापीय जात्य त्रिभुज के ज्याक्षेत्र में भुजांशकर्ण और क्रान्तिभुज की ज्याए वास्तविक हैं, कोटिंचाप विषुवांश की ज्या वास्तव नहीं है किन्तु मुज (क्रान्ति) कोटिव्यासार्धधृत ( द्युज्या व्यासाची वृत्त ) में परिणत होकर मूलगत रेखा (कमलाकरोक्त व्यक्षोदय लबज्या) होती है, नवत्यैश, नवत्यंश भर जिनांश इन भुज से उत्पन्न त्रिभुज का ज्याक्षेत्र (त्रिज्या कणं, जिनज्या भुज, जिनांश कोटिज्या= पर मास्मव्रज्या, कोटि से उत्पन्न त्रिमुष) पूर्वोक्त त्रिभुज (भुजज्या, कान्तिज्या, मूलगत रेलाभों से उत्पन्न त्रिभुज ) का सजातीय है इसलिये अनुपात करते हैं यदि त्रिज्या में बिनया ( परम क्रान्तिज्या ) पाते हैं तो रविभुजज्या में क्या इस अनुपात से इष्टा त्रिज्या आती है जिज्या. मुंज्या, !=ांज्या, त्रिज्या की, क्रान्तिज्या भुज, क्रान्तिकोटिज्या (या) कोटि इन मुषों से उत्पन्न त्रिभुज में/त्रि-कांज्या=ड्या, प्रभाकर्ण, कान्ति या श्रीट, या मृग इन मृगों से उत्पन्न एक त्रिभुज, तथा द्वादश कोटि पलभा भुब, पलकर्णी
पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/२५९
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति