स्पष्टधकारः २४९ भवति । ततोऽनुपातो यदि गत्यन्तरकलाभिः षष्टिघटिया लभ्यन्ते तदा गतकलाभिर्ग म्यकलाभिश्च किं समागच्छन्ति गतघटिका गम्यघटिकाश्चत्यनेनाचायॉक्तमुपपद्यते, ३०४रविचन्द्रन्तरां रविचन्द्रान्दीन अथपूर्वोक्तगततिथिस्वरूपम् = ३६॥ १२ + य, अत्र शेषं वत्तं मानतिथेनैतावयवरूपम् तद्धराच्छुद्धं भोग्यं स्यात् । ततोऽतु- १२ पारिल-श्लक्स = असित-cगतघटिकाः।६०xभोग्यकला, भोग्यविफलभोग्यघटिकाः एतेन “मिहिर विरहितेन्दोरंशकेभ्यो द्विचन्द्र: १२ गत- गत्यन्तरक गत्यन्तरक तिथिनिचयः स्यात्तत्र शेषं गताख्यम् । तदपि हरविशुद्धं गम्यकं तद्विलिप्ता गतिवि वरविभक्ता यातयेयाख्यनाड्यःश्रीपत्युक्तमुपपद्यते, सिद्धान्तशिरोमणौ भास्करे. णापी ‘रविरसंवरवीन्दुलवहृता इत्यादिना ’ दमेव कथ्यत इति ॥ ६२ ॥ अब तिथ्यानयन को कहते हैं । हि. भा- रवि और चन्द्र की अन्तरकला को सत सौ बीस ७२० से भाग देने से लब्धि गत तिथि होती है, गत को हर में से घटाने से गम्य होता है, गत कला और गम्य कला को साठ ६० से गुणा कर गत्यन्तर से भाग देने से गत घटी और गम्य घटी होती है। इति. ॥ ६२ अमान्त काल में रवि और चन्द्र एक ही स्थान में रहते हैं, उसके बाद चन्द्र शीघ्रगति होने के कारण रवि से आगे चला जाता है इसतरह प्रतिदिन चलते चलते फिर रबि के साथ मिलता है तब द्वितीय अमान्त होता है, और चन्द्र मास की पूर्ति होती है, तथा वहाँ रवि और चन्द्र के गत्यंतरांश = ३६०° होता है, तब अनुपात करते हैं यदि रवि और चन्द्र के तीन सौ साठ ३६० अंश तुल्य गत्यन्तरांश में तीस ३० तिथि (१ चन्द्रमास तीस तिथि के होते हैं) पाते हैं तो इष्ट रवि चन्द्र के गत्यन्तरांश में क्या इससे गततिथि प्रमाण भ्राता है। ३०x रविचन्द्रान्तरांश = ३०Xरविचन्द्रान्तरांश ४२ = ६०४रविचन्द्रान्तरांश = ३६० ३६० X२ ७२० रविचन्द्रान्तर कला = गतनक्षत्र+ - यहां शेष वर्तमान तिथि का गतावयव रूप है। ७२० ७२० उसको हर में से घटाने से वर्तमान तिथि का भोग्य अवयव होता है, तब अनुपात करते हैं। यदि गत्यन्तर कला में साठ घटी पाते हैं तो गत कला और गम्य कला कीर्षया इससे गंत बेटी
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