पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३०९

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२९२ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते । षादिरादिभिर्युतं लग्नं भवेत् । परन्तु राशीनां स्थूलत्वात्तदुदयासवः स्थला भवन्ति स्वदेशोदयमानवशेनैव लग्नानयनं सर्वैः प्राचीनै: कृतमस्त्यतस्तल्लग्नायनं न समो चीनं तत एव सिद्धान्तशिरोमणेष्टिप्पण्यां बापूदेवशास्त्रिणा शुद्ध लग्नानयनं कृतं परं तदपि समीचीनं नास्ति । म. म. पण्डित सुधाकरद्विवेदिना तत्खण्डनं कृतम् । "आकाशमध्यविषुवांशवशात्प्रकुर्याद्यष्टि दिवाकरमपक्रमकोटिभागान् । यष्टिं जिनांशजगुरौ विषुवांशकं च स्वक्षायहीनदिनभागमितं क्रमेण । मौथा नुदग्गोलगते प्रकल्प्यसाध्यो भुजांशोऽथ भजाशरव्योः। युतेमितं सायनलग्नमनं भवेत्स्फुटं गोलविदां बुधानामित्यनेन शुद्ध लग्नानयनं च कृतमस्ति, प्राचीनैः सुयं सिद्धान्तकारादिभिनिरयणरवित एव लग्नानयन कृतमित्यपि तेषां दोषः, पभिः प्रकारैर्मयाऽघूर्व लग्नानयनं कृतमस्ति, तज्ज्ञानार्थ मदीयं ‘लग्नानयनम् पुस्तकमवलोकनीय मिति ॥१८-१९-२० अव स्वदेश में लग्नानयन को कहते हैं । हि. भा“रवि को तात्कालिक करके उनकी राशिभोग्यकता को स्वोदयासु (जिस राशि में रवि है , उसके स्वदेशोदयासु) से गुणा कर राशिकला से भाग देने से जो अस्वात्मक लब्धि हो उसको इटुकलासु में से घटा देना, राशि के भोग्यांश को रवि में जोड़कर शेषासु में क्रम से जितने राश्युदयासु घटे उतनी राशि सूर्यो में जोड़ देना, शेष को तीस से गुणा कर अशुद्धोदय (जिस राशि का उदयासु मान नहीं घटा है उससे) से भाग देकर जो अशादिक लातूध हो उसको रवि में जोड़ देना ऐसा करने से लग्न होता है इति ॥ १८-१६-२० ।। उपपत्ति उदयक्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो बिन्दु लगा है अर्थात् उदयक्षितिज और फ्रान्तिवृत्त का सम्पात बिन्दु लग्न है, जिस राशि में तात्कालिक रवि है उस राशि की भोग्यकला से अनुपात करते हैं यदि राशिकला में उस राशि के स्वोदयासुमान पाते हैं तो रवि भोग्यकला में क्या इससे रवि का भोग्यासु प्रमाण भाता है, इसको इष्टकालासु (विभोग्यासू, लग्नमुक्तासु और रविलम्नान्तरालोदयासुश्रों के योग) में से घटा देना तब जो शेष रहे उसमें जितने रायु दयमान घटे उन्हें घटा देना । शेष से अनुपात ‘यदि अशुदराश्युदयासू में तीस अंश पाते हैं तो जासु ॥ था' से प ओ शादिक फल पाता है उसमें मेषादि से प्रमुख राशि से अव्यवहित पूर्व राशितक राशि संस्था जोड़ने से लग्न होता है । परन्तु राशियों के स्थूलत्व के कारण उनका उदयमान भी स्कूल होता है, सब प्राचीनाचार्यों ने स्थूल राश्युदयमान ही के वल से लग्ना नवन किया है इसीलिये बहू ठीक नहीं है, अतः सिद्धान्त शिरोमणि की टिप्पणी में संशोधक (बापूदेव शशी) ने शुद्ध लम्नानम्न किया है। लेकिन वह भी ठीक नहीं है, महामहोपाध्याय अडित सुधाकर द्विवेदी ने उसका सडन किया है। और ‘आकाशमध्य विषुवांशवशात्त्रकुषाव इत्यादि शंसतोपपत्ति में लिखित श्लोकों से अपना भुव लस्नानघन प्रकार किया है, सुई