त्रिप्रश्नाधिकारः २९५ है अब इस ग्रन्थ से तात्कालिक के रवि और लग्न झात करके इष्ट काल बनाते हैं। गोल युक्ति से तात्कालिक रवि केन्द्र के ऊपर जो अहोरात्र वृत्त होता है, उसमें क्षिनि जपयंन्त इष्टकाल कहा गया है, इस इष्ट काल में उदयक्षितिज से ऊपर सूर्य के रहने पर रवि के भोग्यासु, लग्न के भुक्तासु और तदन्तर्गत राशियों का उदयासु, इन सबों का योग है । अत एव आचार्य कहते हैं कि रवि के भोग्यांश को वर्तमान राश्युदय से गुणा कर राशि कला (१८००) से भाग देकर जो लब्धि आया वह रवि के भोग्यासु हैं, उसमें लग्न के भुक्तानु अर्थात् लग्न के भुक्तांश को राश्ययुदय से गुणा कर राशि कला से भाग देकर लब्बि तुल्य रवि के पूर्वानीत भोग्यामु में जोड़ते हैं, और अन्तरवर्ती राशियों का उदयासु जोड़कर सावनेष्ट घटी आचार्य बनाते हैं, परंचसावनेषु घटी चल है इसलिये आचार्य यहां असकृत् कर्म करते हैं। आचाय का सकृत् कर्म कहने का तात्पर्य यह है कि नाक्षत्रेष्ट घटी ज्ञात नहीं है, ज्ञात . है सावनेषु घटी अत एव उक्त प्रकार द्वारा नाक्षत्रेष्ट घटी ज्ञात नहीं होगी। इसलिए सकृत् क्रिया द्वारा इष्ट घटी स्थिर की जाती है। भास्कराचार्य भी कहते हैं कि ‘‘लग्नाद्यामिष्टघटिका यदि सावनास्ताः तात्कालिकार्ककरेण भवेयुराक्ष्यं:’ का गोलाध्याय में विशेष वर्णन है ॥ २१ २२-२३ इदानीं विलोमलग्नं ततः कालानयनं चाह प्राणुदये प्रश्नासुभिरू नोऽकों भुक्तराशिभिर्लग्नम् । कृत्वैवमूनमकं लग्नसमं प्राग् भवेत्कालः ॥ २४ ॥ वा. भा.-अक्रदयात्प्राग् यदा क्रियते तदा रात्रिशेषघटिकाभिः स्वोदये प्राग् वत् कर्म यदि नामभुक्तराशिभिरेतदुक्त' भवति । तात्कालिकाद्रवेभुक्तभागान् संलिख्य लिप्ता कार्याः तदुदयाकून्तराश्युदयप्राणैः शेषं संगुणय्य अष्टादशशतैः विभजेत् फलं प्राणाः प्राणेभ्यो विशोध्य सूर्याच्च राशिभुक्त विशोधयेत् । विशेष प्रेभ्यो भुक्त राशिप्राणास्तावच्छोध्या यावच्छुध्यन्ति सूर्यादपि तावत्संख्या यश्व शोध्या अशुद्धराश्युदयप्राणैः शेषप्रश्नप्राणेभ्यस्त्रिदशादिगुणितेभ्यो यत्फलं दि तदपि रवेः संशोध्य रात्रिशेषे लग्नं भवति । वासनामुखे पश्वाल्लग्नमतो भुक्तेन राशिखण्डेनापचितोऽर्को लग्नं भवति गोले चन्द्र प्रदर्शयेदिति द्वितीये न रात्रिशेषलग्नात्कालानयनमाह । यथाकालेननोऽर्कस्वदेशराश्यु दयेनोनत्वं प्राप्तः एवं वैपरीत्येन लग्नस्य समें त: कालांकितो भवति एतदुक्तं भवति लग्नाद् भुक्तभागैरच्च भुक्तभागैरंतरा युदयैश्चैभिस्तै यैः कालः स रात्रिशेषो भवति रविरट्यूनो लग्नसमो भवति । नाप्यत्र क्षितिजादधः स्थिते नापमंडलखण्डेन योज्या प्राग्वदित यच्छाया गत्तेन शृण नतञ्च वेत्तीत्येतस्य प्रश्नस्योत्तरं बहुभिः प्रकारैः वक्ष्यति तत्र तावदेकेन
पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३१२
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति