पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३२२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

त्रिप्रश्नाधिकारः •x (क्षितिजाहोरात्रवृत्तसम्पातोपरिगतश्रुवप्रोतवृतनाडीनृतयोः सम्याना) पूर्ण परसूत्रस्य समानान्तरारेखा कार्या तदुपरि ग्रहोपरिगतयुगप्रोतबूतनाशकृतोः सम्पाताल्लम्बः कार्यः सेष्टान्त्या, दिनगतशेषयोर्दपं तदुभत (उन्नतकालः) मुतर- दक्षिणगोलयोदचरार्चने हीनं युतं तदा सूत्रपापं (ग्रहोपरिगतश्रुण्प्रतगृत नाडीवृत्तयोः सम्यातात्पूर्वस्वस्तिकं यावत्) भवेदेतस्य ज्या, सूत्र (महोपरित ध्रुवप्रोतवृत्तनाडोवृत्तयोः सम्पातात्पूर्वापरसूत्रोपरिलम्बः) पूर्वकृतपूर्वापरसूत्र- समानान्तररेखा पूर्वापरसूत्रयोरन्तरं चरेज्या उत्तरगो से दक्षिणगोले यो परज्यया क्रमेण युतं होनं सूत्रमिष्टान्त्या भवत्यत्राऽऽधार्येण सूत्रस्य नाम ‘वा’ इष्टान्रभाषा नाम 'ज्या' ऋध्यते सिदान्तशेखरे श्रीपतिना ‘दशमिगुणिते यदि वाऽस्मिन् कर्णमवेहि नरेण विभक्त’ तथा ‘प्राग्वदोन्नतकालतश्चरदमन्यूनाधिकार्डिञ्जिनी युक्तोना गरीबया भवति सा ज्यास्या दिनज्याइता । भक्ताऽण त्रिभधीलया हृतिरसौ वेदो हो वा तत: स: पूर्ववदेव भाश्रवणयोसिद्धिस्ततश्चोक्तयः ऽऽचार्योक्तयो 'गुणितं वा द्वादशभिरित्यादिश्लोकस्य साइरात्रार्षगुणेत्याग्नि श्लोकस्य च' नयोरनुरूपमेव कथ्यते, इति ॥२८ अब प्रकारान्तर से अनाकनिबन और इष्टम को करे ३ ई. मा-त्रिज्या को बारह से घटकर क्ष- डे शण देने से ना (अकारान्तः ) ऋणकर्ण होता है, भीमा (बिनगत और दिन में जो अस्प है वह उनत काल है उनमें गोस काम से पानी को ऊन औौर शुत करने के बा होता है इस वाट यून) की तर गोम में मर दक्षिण गोस में कम से करण्या को जोड़ने और अटले. या (धामण) होती है इति ॥२८॥ यति मयि च में किया जाते हैं तो हाथ हैं या इव बाई अर्थ है Fि.१२ =बाकी, क्षितिज तबाहो रागयुत के चम्पावर्तित करने के पूवंस्वस्तिक से गरान्तर पर नौ और दखि नल में गान्तर पर असर गति से भगता है, उख वि रे (नितिबाहेबपृष्ठवारिबगुण र वर्ण के खम्पा से) पूर्वोतर सूत्र की छमानान्तर हैख कर मैन, व जर अधिक + मत तृत पौर गीत के वश बिगड़ के बो अम्ल का है : उमा है कि सौर विश्व में घौ बल रहता है वह रथ कब है वै सखर १ र २ ग म ङ पापं को नष्ट करते हैं जो व हे कसे या (पोलिश व और लुख के दशक के प्रार र ४ कर च), शयर है और नर सूत्र न बन्चर करण्या ३ उशव हेर दर्ता में इन दो शतक को