३१६ स्फुटसिद्धान्ते नतोत्क्रमज्या छ. नतोत्क्रमज्या = इति- नतो मूल्य एतावताऽऽचायक्तमुपप ध, द्यते, सिद्धान्तशेखरे “नतोत्क्रमज्यागुणिता भ्रमेण हृता त्रिमौव्यऽथ फलेन हीना । दिनार्धजान्त्या यदि वा हृतिः स्याद्’ ऽनेन श्रीपतिनाऽऽचार्योक्तानुरूपमेव कथ्यत इति ।३६। अब प्रकारान्तर से इष्टहृति को कहते हैं। हि. भा.-इष्टकाल में मध्यान्ह से जो नतकाल की खरक्रमज्या है उसको युज्या से” गुणा कर त्रिज्य से भाग देने से जो फल होता है उसको हृति में घटाने से वा(प्रका रान्तर से) इटहृति होती है इति ॥३६॥ क्षितिबाहोरात्रवृत्त के सम्पातपरिगतश्रुवप्रोdवृत्त नावृत में जहाँ लगता है उस बिन्दु से पूर्वापर सूत्र को समानान्तर रेखा कर देना उसके कपर ग्रहोपरिगत ध्रुवम्रोतवृत्त भर नाडीवृत्त के सम्पात बिन्दु से लम्बरेखा इष्टान्स्या है, प्रहपरिगत ध्रुवश्रोतवृत्त और नाडीवृत्त के सम्पात बिन्दु से निरक्षोर्वाधर सूत्र के ऊपर लम्बरेखा नतकालया है, नतकासज्या मूल से निरक्षसस्वस्तिक पर्यन्त नतोत्क्रमज्या है। अन्या में नतोत्क्रमज्या को घटाने से इष्टान्रया होती है तब अनुपात करते हैं यदि त्रिज्या में इष्टान्या पाते हैं तो युज्या में क्या इस अनुपात से इष्हति माती है, इष्टानाञ्च_(मन्या-नतोरूमज्या )व_अन्याबुध्नतोत्क्रमज्याड्- नतोऽमज्यादा =इष्टहृति, इससे आचार्योल चपपन्न हुआ। सिदान्तशेखर में ‘नतोत्क्रमज्या मुणिता अमेए इत्यादिसे श्रपतिआचार्यEनुरूप ही कहते हैं इति ॥३६॥ इदानीं प्रकारान्तरेणेष्टान्त्यां छायानयनभेदांश्चाह अस्या नलोतकमया हीना क्याथ पृथक्कु ठेवः । क्षाम्य व सह फलानि इयानयनानि यत्र ३७ व, भा–येयमनन्तरमेवानीतांत्या सा घटिकानामुक्रमबीवया होना स्त्रिया भवति । तया इयानयनानि प्राग्वत् । वासनाप्यत्र भूदलांत्यज्यसुत्रे अवश्यं वेदवचवः अस्य कृत्वा वानयोर्भेदो न संस्थानः कुतः एवं बुदनादेकक स्वाद भेदात् । क्षयानयनं पृथक्पृथक् अतएव वीक्ष्याचार्येण कृता । तत् बैबाटै उठषटिाभिः कमलयाष्टादश्वानयनानि । तथा नतघटिकाभिः (क) यष्यान्वयादवनन्दनान्वेव षडङ्वन्ति । तदा उम्रतकासात
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